55. जग दिखावे पर आलोचना (विजयवाडा
नगर, आँध्रप्रदेश)
श्री गुरू नानक देव जी गँटूर नगर से विजयवाडा नगर पहुँचे। उस
दिन वहाँ पर एक प्रसिद्ध सौदागर का देहान्त हो गया था। सम्पूर्ण नगर में शोक छाया
हुआ था। परिवार के निकट-सम्बंधियों ने मातम के लिए एक विशेष सभा का आयोजन किया हुआ
था। उसमें स्त्रियाँ बहुत ही अनोखे ढँग से आपसी ताल मिलाकर विलाप कर रही थी। और एक
महिला नैण के नेतृत्व में बहुत ऊँचे स्वर से चिल्ला रही थी। जिसमें हृदय की वेदना न
थी केवल कृत्रिम करुणामय ध्वनियाँ थीं। जिसका ऐहसास श्रोतागणों को हो रहा था।
अधिकाँश नर-नारियाँ औपचारिकता पूरी करने के विचार से उपस्थित हुये थे। गुरुदेव से
बनावटी सहानुभूति का दिखावा सहन नहीं हुआ उन्होंने इसका तुरन्त खण्डन करने का
निर्णय लिया और अपनी बाणी के माध्यम से सत्य कह उठे:
जैसे गोइलि गोइली तैसे संसारा ।।
कूड़ु कमावहि आदमी बांधहि घर बारा ।। 1 ।।
जागहु जागहु सूतिहो चलिआ वणजारा ।। 1 ।। रहाउ ।।
नीत नीत घर बांधीअहि जे रहणा होई ।।
पिंडु पवै जीउ चलसी जे जाणै कोई ।। 2 ।।
ओही ओही किआ करहु है होसी सोई ।।
तुम रोवहुगे ओस नो तुम् कउ कउणु रोई ।। 3 ।।
धंध पिटिहु भाईहो तुम कूड़ु कमावहु ।।
ओह न सुणई कतही तुम लोक सुणावहु ।। 4 ।।
जिस ते सुता नानका जागाए सोई ।।
जे घरु बुझै आपणा तां नीद न होई ।। 5 ।। राग सोरठ, अंग 418
अर्थ: माया के मोह की नींद में सोये हुए जीवों, होश करो,
तुम्हारे सामने तुम्हारा साथी दुनियाँ से सदा के लिए जा रहा है, इसी प्रकार से
तुम्हारी भी बारी आएगी, इसलिए परमात्मा को याद रखो। जैसे कोई ग्वाला परायी जगह पर
अपने पशु आदि चराने ले जाता है, वैसे ही सँसार की कार है। जो आदमी मौत को भुलाकर,
पक्के घर मकान बनाते हैं, वो व्यर्थ करम करते हैं, क्योंकि सदा टिकने वाले घर तभी
बनाए जाते हैं अगर यहाँ पर सदा के लिए रहना हो। अगर कोई विचार करे तो, असलियत यह है
कि जब आत्मा यहाँ से चली जाती है, तो शरीर भी गिर पड़ता है न तो शरीर रहता है और नाहीं
आत्मा। हे भाई किसी सम्बंधी के मरने पर क्यों व्यर्थ हाय, हाय करते हो। सदा स्थिर
रहने वाला केवल परमात्मा ही मौजूद है और सदा मौजूद रहेगा। गुरुदेव के मधुर कँठ से
झूठे दिखावे पर मीठी फिटकार सुनकर सबको ऐहसास हुआ कि वे सब झूठ की लीला ही तो रच रहे
थे जो कि वास्तविकता से कोसों दूर थी। शब्द की समाप्ति पर जनसमूह के आग्रह पर
गुरुदेव ने कहा, यह मात लोक कर्मभूमि है। यहाँ पर प्राणी आरज़ी रूप में कुछ शुभ कर्म
सँचित करने आते हैं। जब उसकी निर्धारित अवधि समाप्त होती है तो उसके हुक्म के
अनुसार उसको वापस लौटना ही है इसमें झूठा दिखावा करने की क्या आवश्यकता है ? अतः इन
बातों से कुछ भी प्राप्ति होने वाली नहीं। क्योंकि सभी ने बारी-बारी वापिस जाना ही
है। यह मात लोक किसी के लिए भी स्थिर स्थान नहीं है।