54. कपिल मुनि का आश्रम (गँटूर नगर,
आँध्रप्रदेश)
श्री गुरू नानक देव जी कुड़प्पा नगर से गँटूर नगर पहुँचे। उस
स्थल पर जलाशय, झीलों की भरमार थी तथा वह स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य के अदभूत दृश्य
प्रस्तुत करता था। जिसकी छटा मनमोहक थी। आदिकाल से ही महापुरुष इस क्षेत्र को "तपोवन"
के रूप में प्रयोग करते रहे हैं। प्राचीनकाल में इस क्षेत्र में कपिल मुनि नामक एक
ऋषि हुए हैं जिनकी याद में लोगों ने मन्दिर बनवाकर उनकी मूर्ति स्थापित करके
पूजा-अर्चना प्रारम्भ की हुए थी। कपिल मुनि जी ने अपने जीवन काल में प्रभु की
निष्काम आराधना करके दिव्य दृष्टि प्राप्त कर ली थी। जब वह परलोक गमन करने लगे तो
उनके अनुयाईयों ने उनसे पूछा कि उनका उद्धार किस प्रकार होगा ? तो उन्होंने बताया
कि समय आएगा जब उत्तरी भारत के पश्चिमी क्षेत्र से एक पराक्रमी महापुरुष नानक नाम
धारण करके आऐंगे, जो समस्त मानवों के कल्याण के लिए विश्व भ्रमण करेंगे। अतः उनकी
शिक्षा धारण करने पर सबका कल्याण होगा। क्योंकि वही निराकार ओउम ज्योति की उपासना
सिखाऐंगे। गुरुदेव के वहाँ पर आगमन के समय उस मन्दिर की बहुत मान्यता थी। अतः
क्षेत्र के अधिकाँश जपी-तपी लोग, जो कि कपिल मुनि के अनुयायी थे, वहीं बसे हुए थे।
गुरुदेव के कीर्तन का रसास्वादन करने के लिए दूर-दूर से लोग एकत्र हुए, गुरुदेव ने
बाणी उच्चारण की:
ओअंकार ब्रहमा उतपति ।। ओअंकारु कीआ जिनि चिति ।।
ओअंकारि सैल जुग भए ।। ओअंकारि बेद निरमए ।। राग रामकली, अंग 929
अर्थ: हे पाण्डे, तुम मन्दिर में स्थापित की गई मूर्ति को
ओंअकार कह रहे हो और कहते हो कि सृष्टि ब्रह्मा ने पैदा की थी। पर ओअंकार तो वो
सर्वव्यापक परमात्मा है, जिसने स्वयँ ब्रह्मा को बनाया। सारे वेद भी ओअंकार से ही
बने। जीव गुरू शब्द द्वारा उस परमात्मा से जुड़कर उसकी सहायता से ही विकारों से बचते
हैं और गुरू द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर ही सँसार समुद्र से पार निकलते हैं। यह
बाणी सुनते ही कपिल मुनि के अनुयाईयों को किवदँतियो के अनुसार स्मरण हो आया कि
ओंकार की उपासना करवाने वाला महापुरुष नानक नाम धारण करके उत्तर पश्चिम-भारत से आ
गया है। इस पर वे सब अति प्रसन्न हुए एवँ सबने गुरुदेव को दण्डवत प्रणाम किया तथा
गुरू दीक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।