5. दरगाह खवाजा मूईद्दीन चिश्ती (अजमेर,
राजस्थान)
श्री गुरू नानक देव जी बीकानेर से कुछ दिन की यात्रा के पश्चात्
अज़मेर पहुँचे। वहाँ पर प्रसिद्ध पीर खवाजा मुईनउद्दीन चिश्ती का मकबरा है। जिसे
ख्वाजा साहब की दरगाह मानकर पूजा जाता है तथा बहुत लोग मनौतियाँ मानते हैं। गुरुदेव
ने वहाँ पहुँच कर कीर्तन का प्रवाह प्रारम्भ कर दिया। दरगाह की जयारत करने वाले
श्रद्धालु लोगों ने जब गुरुदेव की बाणी सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। देखते ही देखते
दरगाह की कव्वालियाँ सुनने आया जनसमूह गुरुदेव की ओर आकृष्ट हो गया। जिससे दरगाह
सूनी हो गई। इसके विपरीत गुरुदेव के पास भारी जनसमूह संगत रूप में एकत्र होने लगा।
यह देखकर पीरखाने के मजावर विचलित हो उठे तथा गुरुदेव से उलझने चल पड़े किन्तु जनता
की श्रद्धा देखकर उनसे कुछ कहते न बना। उस समय गुरुदेव उच्चारण कर रहे थे:
ध्रिग तिन का जीविआ जि लिख लिख वेचहि नाउ ।।
खेती जिन की उजडै खलवाड़े किआ थाउ ।।
सचै सरमै बाहरे अगै लहहि न दादि ।। राग सारंग, अंग 1245
इन पंक्तियों में गुरुदेव कह रहे थे कि हे धर्म के ठेकेदारो तुम
लोग उस अल्लाह का नाम लिख-लिखकर ताबीज रूप में बेच रहे हो। ऐसे में जनता को मूर्ख
बनाकर जो लोग जीविका कमाते हैं, उनके शुभ कर्मों की भी खेती उजड़ जाती है। जब खेती
ही उजड़ जाएगी तो खलियान में कुछ प्राप्ति की आशा करना व्यर्थ है। इसलिए सभी कार्य
सोच समझकर करने चाहिए जिससे परीश्रम निष्फल न जाए। गुरुदेव जी की विचारधारा को
सुनकर मजावर कहने लगे: यह कैसे सम्भव है, हमें प्राप्ति न हो क्योंकि हम शरियत
मुताबिक पाँचों कर्म: कलमा, निमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज करते हैं। गुरुदेव ने इस के
उत्तर में कहा: कि यह सब कार्य तुम शरीर से करते हो। इनको करते समय मन तुम्हारा मन
तुम्हारे साथ नहीं होता। यदि मुसलमान कहलाना चाहते हो तो ये विधि अपनाओ:
मिहर मसीति सिदकु मुसला हकु हलालु कुराणु ।।
सरम सुंनति सीलु रोजा होहु मुसलमानु ।।
करणी काबा सचु पीरु कलमा करम निवाज ।।
तसबी सा तिसु भावसी नानक रखै लाज ।। 1 ।। राग मांझ अंग 140
अर्थ: लोगों पर तरस की मसीत बनाओ, श्रद्धा को मुसला और हक की
कमाई को कुरान बनाओ। विकारों से दूर रहने को सुन्नत बनाओ और अच्छे स्वभाव को रोजा
बनाओ, इस प्रकार से, हे मेरे अल्लाह के बन्दे, मुस्लमान बन। ऊँचा आचरण काबा हो और
अन्दर बाहर से एक जैसा रहना, पीर हो और अच्छे करम की निमाज से कलमा बने। जो बात उस
अल्लाह को ठीक लगे वो तसबी हो यानि वो बात सिर माथे पर माननी। हे नानक, ऐसे
मुस्लमान की परमात्मा लाज रखता है। गुरुदेव द्वारा सच्चे मुसलमान की वास्तविक
परिभाषा जानकर संगत में से कुछ बुद्धिजीवी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मुजावरों के
पाखण्ड तथा आडम्बरों के विरुद्ध आवाज उठाई। जिस कारण वह गुरुदेव की शरण में आ गए तथा
प्रार्थना करने लगे, हम फ़कीर लोग हैं, आप हमारे अवगुणों का पर्दाफाश न करें। जिससे
हमारी रोजीरोटी चलती रहे। गुरुदेव ने तब उन्हें वास्तविक फ़कीर के लक्षण बताए कि आप
यदि ऐसा ही चाहते हैं तो अपने आचरण में फ़कीरी के लक्षण उत्पन्न करो।