49. परमेश्वर का कोई प्रतिद्वन्दी नहीं
(करानूर नगर, तामिलनाडू)
श्री गुरू नानक देव जी कुँभकोनम नगर से करानूर नगर में पहुँचे।
उन दिनों वहाँ पर गणेश पूजा का वार्षिक उत्सव आयोजन किया जा रहा था। उनकी यह मान्यता
थी कि सर्वप्रथम गणेश पूजन करने से कार्य सिद्ध होते हैं। गुरुदेव ने इस बात पर
आपत्ति प्रकट की तथा कहा कि निराकार पारब्रह्म परमेश्वर ही सभी कार्य सिद्ध करने
वाला है। जब वह परमज्योति ही सृष्टि का सँचालन कर रही है तो कोई दूसरा उसके कार्यों
में किस प्रकार हस्तक्षेप कर सकता है। धन, धरती, पुत्र, ऋद्धि-सिद्धि इत्यादि देने
वाला गणेश नहीं बल्कि वह सर्व शक्तिमान पारब्रह्म परमेश्वर है। इसलिए आज तक
परमेश्वर का कोई प्रतिद्वन्दी उत्पन्न नहीं हुआ। अतः प्राणी मात्र को किसी दूसरे पर
श्रद्धा न करके केवल एक निराकार ज्योति पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो कि सर्व
सुखों का दाता है। गुरुदेव ने तब भाई मरदाना जी को रबाब बजाने को कहा और शब्द
उच्चारण किया:
सब तेरी कुदरति तू सिरि सिरि दाता सभु तेरो कारणु कीना हे
।।15 ।।
इकि दरि सेवहि दरहु वञाए ।।
ओइ दरगह पैधे सतिगुरु छडाए ।।
राग मारू, अंग 1028
अर्थः हे मेरे स्वामी, हे मेरे परमात्मा, सभी के अन्दर तेरी ही
शक्ति है। तूँ सभी का दातार स्वामी है और केवल तूने ही सारे सँसार की रचना की है।
अगर कोई तेरे दर पर तेरी टहल अर्थात सेवा कमाते हैं, उनकी सभी तकलीफें दूर हो जाती
हैं। वो हमेशा साईं के दरबार में यानि परमात्मा के दरबार में शोभा पाते हैं और सच्चे
गुरू जी उनकी मुक्ति (बंदखलास) कर देते हैं।