48. आडम्बरों पर प्रभु नहीं रीझता (कुँभकोनम
नगर, तामिलनाडू)
श्री गुरू नानक देव जी मलेशिया से जब जलपोत द्वारा वापिस
नागापट्टनम बन्दरगाह पर आ रहे थे तो रास्ते में कुछ तामिल मजदूरों से भेंट हुई, जो
कि अपने घरों को वापस लौट रहे थे। उन्होंने गुरुदेव से अनुरोध किया कि वे उनके साथ
गाँव चलें, जो कि नागापट्टनम के निकट ही कुँभकोनम नगर में पड़ते हैं। वहाँ पर लोग
बहुत रूढ़िवादी विचारों के हैं तथा वे अपना जीवन व्यर्थ के कर्मकाण्डों में नष्ट करते
रहते हैं। शायद आपके प्रवचनों से वहाँ कोई क्रांति आ जाए, जिससे जनसाधारण में जागृति
आ जाए। गुरुदेव ने अब उत्तर भारत की तरफ आना ही था, अतः उनका अनुरोध स्वीकार करते
हुए वे उन लोगों के साथ उनके मुख्य नगर कुँभकोनम पहुँचे। वहाँ पर लोगों में
अनावश्यक रस्मों और रिवाजों को देखकर गुरुदेव ने कहा, लोग जितने आडम्बर रचेंगे उतनी
कठिनाइयाँ ही मोल लेंगे। वास्तविक्ता यह है कि प्रभु केवल प्रेम का भूखा है। वह किसी
के आडम्बर या दिखावे पर प्रसन्न नहीं होता।