47. त्री-सूत्रीय कार्यक्रम,
कल्याणकारी (कवालालम्पुर, मलेशिया)
श्री गुरू नानक देव जी भारतीय व्यापारियों के साथ उनके अनुरोध
पर मलेशिया के मुख्य बन्दरगाह कवालालम्पुर में पहुँचे। वहाँ पर उन दिनों दक्षिण
भारत के तमिल लोग बहुत बड़ी सँख्या में रोजगार की तलाश में पहुँच रहे थे। उन लोगों
ने गुरुदेव का भव्य स्वागत किया तथा उनको कार्यक्रमों का आयोजन करके कई जगह पर
कीर्तन तथा प्रवचन सुने। उन दिनों गुरुदेव अपने मूल सिद्धाँत त्री सूत्रीय
कार्यक्रम ही जनसाधारण में दृढ़ करवा रहे थे। करम करो यानि परीश्रम करो, वंड के छको
यानि बाँटकर खाओ तथा नाम जपो अर्थात एक निराकार परम ज्योति का चिन्तन-मनन करो। यह
सहज सरल मार्ग वहाँ के जनसाधारण में बहुत लोकप्रिय हुआ। लोगों ने गुरुदेव की शिक्षा
अनुसार अपने रूढ़िवादी विचार त्यागकर जाति-पाति के भेदभाव बिना, वर्गविहीन समाज की
स्थापना कर ली तथा कर्मकाण्डों से छुटकारा प्राप्त करके मिलजुल कर रहने लगे।
गुरुदेव ने वहाँ पर साधसंगत की स्थापना की तथा धर्मशाला बनवाने के लिए प्रेरित किया।
कवालालम्पुर से गुरुदेव उन्हीं जहाज़ों द्वारा वापस नागापट्टनम बन्दरगाह पर लौट आए।
क्योंकि वह जहाज़ इसी बन्दरगाह से आते-जाते थे।