45. श्रमिकों के अर्न्तजातीय विवाह (जकार्ता,
इन्डोनेशिया)
इस प्रकार मजदूर दलों के साथ जहाज द्वारा गुरुदेव जी नागापट्टनम
से इन्डोनेशिया जकार्ता नगर में पहुँच गए। वहाँ के भारतीय मजदूरों को जब गुरुदेव के
व्यक्तिव के विषय में, नये मजदूरों से जानकारी मिली तो वह गुरुदेव को अपने खेमों
में ले गए। जहां पर श्रमिक अपना कार्य समाप्त करके प्रायः मनोरँजन के लिए अपनी
परम्परा अनुसार ढोलक चिमटा लेकर गाना बाजाना किया करते थे। भोजपुरी भजनों का
कार्यक्रम भी कभी-कभी होता था। अतः वे लोग, गुरुदेव का कीर्तन भी सुनने लगे जो कि
शास्त्रीय सँगीत पर आधरित, एकमात्र प्रभु स्तुति, के लिए होता था। कुछ ही दिनों में
वहाँ पर स्थानीय जनता में गुरुदेव के कार्यक्रमों का कई स्थानों पर आयोजन होने लगा।
गुरुदेव अपने प्रवचनों में सदैव ही परस्पर मिलजुल कर, बिना भेद-भाव के रहने की
शिक्षा देते। अतः इस भावना के अर्न्तगत आप जी ने कुछ श्रमिकों के अर्न्तजातीय विवाह
भी करवा दिये, जो कि वहीं पर स्थाई रूप में वास करना चाहते थे। इस तरह वहाँ पर एक
नई सँस्कृति ने जन्म ले लिया। यह सब देखकर वहाँ के कृषक बहुत प्रभावित हुए, जो कि
भारत भूमि से गन्ने की खेती का उद्योग चलाने गए हुए थे। उन्होंने, गुरुदेव की भेंट
बड़े व्यापारियों से करवाई जो कि वहाँ जहाज़रानी के कार्यक्षेत्र में कार्यरत थे और
भारत से इन देशों के लिए माल के आदान-प्रदान में गहरी रुचि ले रहे थे। गुरुदेव के
सम्पर्क में आने से वे जल्दी ही उनके श्रद्धालु बन गए और उन्होंने गुरुदेव को अपने
साथ चलने का आग्रह किया। गुरुदेव ने उनकी बिनती स्वीकार करके उनके साथ सिँगापुर के
लिए चल पड़े।