44. श्रमिकों की समस्या का समाधान (नागापट्नम
बँदरगाह, तामिलनाडू)
श्री गुरू नानक देव जी तँजावुर नगर से नागापट्टनम बन्दरगाह पर
पहुँचे। उन दिनों वहाँ से भारतीय मजदूर दक्षिण पूर्व देशों में मजदूरी करने इसी
बन्दरगाह से मलाया, मलेशिया, इंडोनेशिया इत्यादि देशों के लिए जाते थे। अतः उस समय
बिहार तथा उड़ीसा के मज़दूर भी उस बन्दरगाह से रवाना होने के लिए जहाज की प्रतीक्षा
कर रहे थे। जब गुरुदेव की उनसे भेंट हुई तो वे लोग गुरुदेव के व्यक्तित्व से बहुत
प्रभावित हुए। क्योंकि एक तो भाषा की समस्या न थी दूसरे यह मजदूर भी अपना खाली समय
व्यतीत करने के लिए भजन इत्यादि गाकर अपना मनोरँजन करते रहते थे। जिससे परस्पर
निकटता आ गई और गुरुदेव के कीर्तन में वे सब बहुत रुचि लेने लगे। किन्तु उनके सामने
एक समस्या सदैव बनी रहती थी कि उन लोगों में हिन्दू-मुस्लिम का भेदभाव था तथा
रूढ़िवादी तो एक दूसरे का स्पर्श किया पानी भी नहीं पीते थे। अतः उन्होंने गुरुदेव
के सम्मुख अपनी समस्या रखी और पूछा, आपने किस प्रकार एक मुस्लिम को अपना साथी बना
रखा है। गुरुदेव ने तब उन्हें आदर्श जीवन जीने का ढँग बताते हुए कहा:
एको हुकमु वरतै सभ लोई ।। एकसु ते सभ ओपति होई ।। 7 ।।
राह दोवै खसमु एको जाणु ।। गुर कै सबदि हुकमु पछाणु ।। 8 ।।
सगल रूप वरन मन माही ।।
कहु नानक एको सालाही ।। 9 ।। राग गउड़ी, अंग 223
अर्थ: वह प्रभु, सबका मालिक है, उसके हुक्म से ही सभी की उत्पति
हुई है। अतः किसी में कोई अंतर नहीं है। सभी कुछ तो एक समान है। भले ही प्रभु की
निकटता प्राप्ति के लिए लोगों ने अलग-अलग रास्ते बना लिए हैं किन्तु वह तो एक ही
है। गुरमति ने यह सिद्धाँत दृढ़ करवा दिया है कि वह सभी में विद्यमान है। इसलिए सबको
एक-दूसरे में उसी की ही ज्योति देखनी चाहिए। इस पर सभी मजदूरों के नेता, जिनके
नेतृत्व में वे लोग जकार्ता, जावा दीप जा रहे थे, गुरुदेव से भेंट करने आए तथा कहा,
हे गुरुदेव ! धर्म के नाम से अकारण ही जो झगड़ा करते रहते हैं, यही बातें हमारे दुख
का कारण हैं। आप कृपया मिलजुल कर रहने का रहस्य बताएँ ताकि हम जहां भी जाए हंसी खुशी
जीवन जी सके। इस के उत्तर में गुरुदेव ने कहा, जब आप एक-दूसरे को अपना भाई मानकर
उसकी भावनाओं का सत्कार करना सीख जायोगे, उस दिन तुम्हारी सभी समस्याएँ समाप्त हो
जाएँगी। गुरुदेव की बाणी का उनके मन पर गहरा प्रभाव हुआ। वे सब मिलकर गुरुदेव से
अनुरोध करने लगे और कहा, हे गुरुदेव, यदि आप हमारे साथ चलें तो हमारी सभी समस्याएँ
स्वयँ हल हो जाएंगी तथा हमें जीने का ढँग भी आ जाएगा क्योंकि पहले भी जो मजदूर जावा,
सुमात्रा में कार्यरत है, उनमें किसी विधि से आपसी घृणा तथा द्वैष की भावना समाप्त
हो। जिससे हम आपसी कलह कलेश से छुटकारा प्राप्त करके अपने मुख्य लक्ष्य पर ध्यान
केन्द्रित करके, धन अर्जित कर सकें। गुरुदेव ने उनका अनुरोध सहर्ष स्वीकार कर लिया
क्योंकि गुरुदेव का उद्देश्य दुखी मानवों में भ्रातृत्व की भावना उत्पन्न करना ही
तो था।