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4. गुग्गा का खण्डन (बीकानेर, राजस्थान)

श्री गुरू नानक देव जी पाकपटन से अनूपगढ़ होते हुए बीकानेर पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने नगर के बाहर एक वृक्ष के नीचे अपना डेरा लगा लिया तथा कीर्तन प्रारम्भ किया। जिसे सुनने के लिए जिज्ञासु एकत्रित हो गए। उन जिज्ञासुओं में कुछ लोग बैरागी भी थे। उन्होंने गुरुदेव की बाणी सुनकर अनुभव किया कि यह महापुरुष साधारण संतों की तरह के नहीं, उनकी बाणी जीवन का तथ्य सार प्रदर्शित कर रही है। अतः इन महापुरुषों से आध्यात्मिक मार्ग का ज्ञान प्राप्त होने की सम्भावना है, इसलिए ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने निवेदन किया। यह विचार लेकर एक बैरागी ने गुरू जी से प्रश्न किया: कि इस मृत्यु–लोक में मनुष्य के आने का क्या प्रयोजन है ? उत्तर में गुरुदेव ने कहा: यह मनुष्य जन्म ही एक मात्र ऐसा जन्म है, जिसके सफल हो जाने पर आवागमन का चक्र समाप्त हो जाता है। दूसरे वैरागी ने बोला: कि यह मनुष्य जन्म किस प्रकार सफल किया जा सकता है और परमेश्वर की प्राप्ति किस विधि से हो सकती है ? गुरुदेव ने उत्तर देते हुए मधुर बाणी में कहा:

जब लगु सबद भेदु नही आइआ तब लगु कालु संताए ।।
अन कोदरु घरु कबहू न जानसि एको दरु सचिआरा ।।
गुर परसादि परम पदु पाइआ नानकु कहै विचारा ।। राग भैरउ, अंग 1126

अर्थ: प्रभु का नाम ही एक मात्र जीवन सफल करने का साधन है परन्तु आराधना की युक्ति शब्द-भेद का ज्ञान होना अति आवश्यक है। शब्द के बल पर ही मनुष्य उस परमात्मा के द्वार पर पहुँचता है तथा उसकी भटकन समाप्त होती है। परन्तु यह सब कुछ प्रभु की कृपा के पात्र बनने से प्राप्त होता है। भावार्थ प्राणी को प्रत्येक क्षण उस प्रभु का दास बनकर जीवन जीना चाहिए। इस पर बैरागी बोले: कि गुरुदेव आप ठीक कहते हैं परन्तु यहाँ के निवासी आपकी विचारधारा के विपरीत आचरण करते हैं, वे अपने प्रत्येक गाँव में गोगा नाम के एक राजपूत फ़कीर की कब्र बनाकर उसकी पूजा करते हैं। क्या ऐसा करने से किसी फल की प्राप्ति हो सकती है ? इसके उत्तर में गुरुदेव जी ने कहा: कि किंवदन्तियों के अनुसार तो गुग्गा नाम का व्यक्ति, जीवित रहते अपनी माता को प्रसन्न नहीं कर पाया क्योंकि उसकी मंगेतर को उसके सौतेले भाई विवाह करके ले गये थे तथा सौतेली माता के श्राप से उसकी मृत्यु हुई। ऐसे व्यक्ति मरने के पश्चात् किसी का क्या सँवार सकते हैं जो स्वयँ जीवन भर साँसारिक झमेलों से परेशान रहे हैं। खैर............ बात समझने की है कि सभी सुखों का दाता एक ही भगवान है जिसे हम अकाल पुरुष कहते हैं अर्थात जो अमर है, जो काल से ऊपर है। इसलिए परमात्मा के अलावा किसी और की पूजा (देवी-देवता, किसी जन्में पुरूष या महापुरूष आदि) की पूजा नहीं करनी चाहिए। यहाँ परमात्मा की पूजा का अर्थ उसका नाम जपने से है। परमात्मा का नाम जपना ही उसकी पूजा है।

करि किरपा राखहु रखवाले ।। बिनु बुझे पसू भए बेताले ।।
गुरि कहिआ अवरु नही दूजा ।। किसु कहु देखि करउ अन पूजा ।।
राग गउड़ी, अंग 224

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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