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39. बौद्ध भिक्षुकों के साथ गोष्ठी (ट्रिंकोमली नगर, श्रीलँका)

श्री गुरू नानक देव जी वटीकलोवा से प्रस्थान करके ट्रिंकोमली नगर पहुँचे। उन दिनों यह नगर भी घने जँगलों में समुद्र के किनारे बसा हुआ था। वहाँ पर एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर था। गुरुदेव की महिमा सुनकर वहाँ के नागरिक उनके दर्शनों के लिए उस मन्दिर में इकट्ठे हो गये। परन्तु गुरुदेव वहाँ न जाकर एक वीरान स्थल पर जा विराजे तथा भाई मरदाना जी को साथ लेकर कीर्तन में व्यस्त हो गए। अतः कुछ कुलीन नागरिक आपकी अगवाई के लिए आए और प्रार्थना की कि वे उनके मन्दिर में पधारें। किन्तु गुरुदेव ने कहा ईश्वर सर्वव्यापक है और प्रत्येक स्थान पर विद्यमान है। जिसका उनको अनुभव हो रहा है। गुरुदेव के वहाँ स्थिर रहने से संगत धीरे-धीरे वहीं पर जुड़ गई और कीर्तन समाप्ति पर श्रोताओं ने गुरुदेव से कहा, आप जी ने वटीकलोवा में ईश्वर के अस्तित्व के विषय में बौद्ध भिक्षुकों को ज्ञान देकर उनका मार्ग दर्शन किया है। उसी प्रकार ईश्वर प्राप्ति के लिए हमारा भी मार्गदर्शन करें। हम ऐसे कौन से कार्य करें जिससे प्रभु प्राप्ति सम्भव हो सके ? इस के उत्तर में गुरुदेव ने कहा, ऐसे सैंकड़ों कर्मकाण्ड हैं जो धार्मिक माने जाते हैं जैसे-हिमालय पर घोर तपस्या करना, स्वर्ण के भन्डार दान करना, भूमि दान करनी, धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करते रहना, गाय दान करनी, तीर्थ यात्रा करनी इत्यादि। यदि यह सब कर्म तराजू के एक पलड़े पर रखे जाए और दूसरी तरफ हरिनाम रखा जाए तो हरिनाम का पलड़ा ही सदैव भारी रहेगा क्योंकि ये कर्म हरि भजन के समक्ष तुच्छ हैं। हाँ शर्त केवल एक ही है कि हरि भजन करते समय चरित्र का उज्ज्वल होना अति आवश्यक है। अर्थात आचरण से शुभ कर्म करना अनिवार्य है। आप जी ने तब इसी सँदर्भ में बाणी उच्चारण की:

राम नामि मनु बेधिआ अवरु कि करी वीचारु ।।
सबद सुरति सुखु उपजै प्रभ रातउ सुख सारु ।।
जिउ भावै तिउ राखु तूं मै हरि नामु अधारु ।। 1 ।।
मन रे साची खसम रजाइ ।।
जिनि तनु मनु साजि सीगारिआ तिसु सेती लिव लाइ ।। 1 ।। रहाउ ।।
तनु बैसंतरि होमीऐ एक रती तोलि कटाइ ।।
तनु मनु समधा जे करी अनदिनु अगनि जलाइ ।।
हरि नामै तुलि न पुजई जे लख कोटी करम कमाइ ।। 2 ।।
राग सिरी राग, अंग 62

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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