SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

38. एकीश्वर के अस्तित्व पर गोष्ठी (वटीकलोवा बन्दरगाह, श्रीलँका)

श्री गुरू नानक देव जी, कत्तरगामा नगर से वटीकलोवा बन्दरगाह पहुँचे। यह बन्दरगाह श्रीलंका के पूर्वी तटीय स्थल पर है। वहाँ पर बौद्ध धर्मावलम्बियों का बहुत प्रभाव था। वे लोग प्रभु के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते थे। जबकि गुरुदेव प्रभु परमेश्वर को सर्वव्यापक, साक्षात तथा सर्वशक्तिमान मानते थे। अतः इस मतभेद को लेकर बहुत बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया। जिसके समाधान के लिए स्थानीय तत्कालीन राजा धर्मा-प्रक्रमावाहु नोवम् ने सभी तरह के विज्ञान जानने वालों और हिन्दू पंडितों को आमन्त्रित कर कहा कि आप सब मिलकर ईश्वर के अस्तित्व के ऊपर चर्चा करें। इस अवसर का लाभ उठाते हुए गुरुदेव ने अपने विचार कीर्तन द्वारा प्रकट करते हुए बाणी उच्चारण की:

एको एकु कहै सभु कोई हउमै गरबु विआपै ।।
अंतरि बाहरि एकु पछाणै इउ घरु महलु सिञापै ।।
प्रभु नेड़ै हरि दूरि न जाणहु एको स्रिसटि सबाई ।।
एकंकारु अवरु नही दूजा नानक एकु समाई ।। राग रामकली, अंग 930

गुरुदेव ने अपनी बाणी में कहा कि केवल अभिमान या अँहभाव से ही व्यक्ति अपने से प्रभु को दूर मान लेता है। नहीं तो वह उसके अन्दर है और वह उसमें व्यापक है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक मछली समुद्र के भीतर रहती है और समुद्र की खोज में निकलती है कि समुद्र कहाँ तक है ? जबकि वह स्वयँ समुद्र में है और उसमें भी समुद्र है। ठीक उसी प्रकार ईश्वर, ज्योति स्वरूप शक्ति सर्वथा विद्यमान है। यह शरीर ही उसकी अदभुत रचना है। न किसी ने इसे खरीदा है न ही किसी ने इसे बनाया है। अतः यह सब उस प्रभु का उपहार है जिसका कि हर एक को सदुपयोग करना चाहिए। गुरुदेव के तर्कों के सामने कोई टिक नहीं सका। अतः सबने अन्त में पराजय स्वीकार कर ली।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.