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28. अश्लील मूर्तियों की निंदा (रँगपट्टम नगर, कर्नाटक)

श्री गुरू नानक देव जी पुणे से कर्नाटक प्राँत के रँगपट्टम नामक नगर में पहुँचे। वहाँ पर स्थानीय जनता, विष्णु की उपासक थी, उन्होंने तुँगभद्रा नदी के किनारे एक विशाल मन्दिर बना रखा था जहां भान्ति-भान्ति मुद्राओं में विष्णु जी की काल्पनिक लीलाओं की मूर्तियों का निर्माण करके पूजा की जाती थी। जिसमें शेषनाग पर विराजमान विष्णु जी की मूर्ति प्रमुख थी। पुजारियों ने बहुत सी किवदंतियाँ फैला रखी थी कि वहाँ पर नारद जी ने भस्मासुर दैत्य से शिव की रक्षा करने के लिए विष्णु जी को मोहिनी रूप धारण करने के लिए आग्रह करते हुए प्रेरित किया था। अतः वहाँ के मन्दिरों में अनेक मुद्राओं में नृत्य करते हुए मोहिनी रूप में रति क्रिया में संलग्न मूर्तियाँ थी, जिसे देखकर मन उत्तेजित तथा चँचल हो उठे। इन मूर्तियों को अश्लीलता की सँज्ञा देकर गुरुदेव ने भर्त्सना की और कहा कि जहां साधारण मनुष्य का मन एकाग्र होने के स्थान पर चलायमान हो जाए, वे मन्दिर या पूजा स्थल नहीं बल्कि व्यभिचार का स्रोत हैं। अतः वहाँ के सँचालक धर्म के नाम पर भ्रान्तियाँ फैलाने का साधन बन गए है, जिस कारण प्रभु से निकटता के स्थान पर दूरी बढ़ रही है। गलत मार्गदर्शन से साधारण जिज्ञासु की भटकन समाप्त होने के स्थान पर और बढ़ गई है, जिसका दोष इन सँचालकों, सँस्थापकों तथा निर्माताओं पर आता है, जो कि धन को सँचित करने के लिए जनता को गुमराह करके उनका जीवन नष्ट कर रहे है। जबकि समस्त बुद्धिजीवी जानते है कि बिना हरि भजन के प्राणी आवागमन के चक्र से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता।

अंध आगू जे थीऐ किउ पाधरु जाणै ।।
आपि मुसै मति होछीऐ किउ राहु पछाणै ।।
किउ राहि जावै महलु पावै अंध की मति अंधली ।।
विणु नाम हरि के कछु न सूझै अंधु बुडौ धंधली ।।
दिनु राति चानणु चाउ उपजै सबद गुर का मनि वसै ।।
कर जोड़ि गुर पहि करि विनंती राहु पाधरु गुरु दसै ।। राग सूही, अंग 767

अर्थ: अगर किसी इन्सान का आगू यानि की मुखिया वो इन्सान बन जाए, जो कि आप ही माया में फसा हुआ है, तो वो जीवन सफर का सीधा रास्ता नहीं समझ सकता। क्योंकि जिसकी अगुवाई में वो चल रहा है, वो तो खुद ही कामादिक विकारों में लूटा जा रहा है, तो उसे कैसे लाभ मिल सकता है। माया मोह में अँधे हुए मनुष्य की अपनी अक्ल ही बेकार हो जाती है, वो आप ही सही रास्ते पर नहीं चल सकता और परमात्मा का दर नहीं खोज सकता, ऐसा इन्सान माया के मोह में अँधा होकर माया की दौड़ भाग में ही लगा रहता है। लेकिन जिस मनुष्य के मन में गुरू का शब्द बस जाता है उसके दिल में दिन रात परमात्मा के नाम का उजाला हुआ रहता है, उसके अन्दर सेवा और सिमरन का उत्साह बना रहता है। वो अपने दोनों हाथा जोड़कर गुरू के आगे बिनती करता रहता है, क्योंकि गुरू उसको जीवन का सीधा रास्ता बताता है। गुरुदेव ने अपने विचारों को कीर्तन तथा प्रवचनों में व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया कि बिना हरि भजन तथा बिना अच्छे आचरण के छुटकारा नहीं मिल सकता।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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