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26. नारी जाति का अपमान (जिला ठाणे शिव मन्दिर, अमरनाथ, महाराष्ट्र)

श्री गुरू नानक देव जी नासिक से ज़िला ठाणे में पहुँचे वहाँ पर अमरनाथ नामक एक प्रसिद्ध शिव मन्दिर है। वहाँ शिवलिंग की पूजा की जाती है। अतः वहाँ अँधविश्वास के कारण स्त्रियां अपने भग-द्वार से शिवलिंग का स्पर्श अनिवार्य समझती थी। इस प्रकार की उपासना पर गुरुदेव ने आपत्ति की और कहा नारी जाति का यह घोर अपमान है। किन्तु वहाँ पर यह भ्रान्तियाँ फैला रखी थी कि मासिक धर्म होने पर नारी अपवित्र हो जाती है इसलिए उसे पुनः पवित्र होने के लिए शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। गुरू जी ने इस भ्रमजाल को तोड़ने के लिए जागृति लाने के विचार से वहाँ पर विद्वानों को आमन्त्रित करके, विचार गोष्ठी करने का कार्यक्रम बनाया। अतः गुरुदेव ने शिवरात्रि के दिन मेले में जनता के सामने अपने विचार कीर्तन रूप में प्रस्तुत किए:

जिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वार ।।
जूठे जूठा मुखि वसै नित नित होइ खुआरु ।।
सूचे ऐहि न आखीअहि वहनि जि पिंडा धोइ ।।
सूचे सेई नानका जिन मनि वसिआ सोइ ।। राग आसा, अंग 472

अर्थ: प्रकृति के नियमानुसार नारी जाति की जननक्रिया के लिए मासिक धर्म एक सहज क्रिया है। इसमें किसी प्रकार का भ्रम करना मूर्खता है। जो लोग इस सहज क्रिया को अशुद्ध या अपवित्र जानकर समाज में भ्रान्तियाँ फैलाकर, पाखण्ड करके माता-बहनों का उपहास करके उन्हें नीचा दिखाते हैं वे स्वयँ बर्बाद होते हैं। शरीरिक स्नान से पवित्रता कदाचित् स्थाई नहीं हो सकती, क्योंकि शरीर में सदैव मल-मूत्र किसी न किसी रूप में विद्यमान रहता है। केवल वही व्यक्ति पवित्र है जिनके हृदय में प्रभु का वास है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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