25. स्वाँगी गुरू (नासिक, पँचवटी,
महाराष्ट्र)
श्री गुरू नानक देव जी सूरत से नासिक की ओर प्रस्थान कर गए। वहाँ
स्थानीय जनता द्वारा प्रत्येक वर्ष एक मेले का आयोजन किया जाता था। जिसमें दूर-दूर
से व्यापारी तथा अनेक वर्ग के लोग इकट्ठे होकर साँस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते
थे। मेला कई दिन चलता था गुरुदेव ने भी अपना खेमा एक उचित स्थान देखकर जल स्त्रोत
के निकट लगा दिया। धीरे-धीरे मेला भरने लगा। गुरुदेव ने भाई मरदाना जी से कीर्तन की
चौकी भरने को कहा, कीर्तन द्वारा "हरियश" सुनने के लिए कई "भक्तगण" धीरे-धीरे आकर
बैठने लगे किन्तु कुछ समय पश्चात्, स्वाँगियो का एक दल निकट आकर नृत्य करने लगा। उस
दल में कुछ सदस्य विभिन्न प्रकार के साज बजा रहे थे। उनकी उत्तेजक धुनों पर उनके
कुछ सदस्य इस प्रकार नाच रहे थे कि दर्शकों को बरबस हंसी आ रही थी। अतः सभी दर्शक
खेल-तमाशा देखकर जाते समय अनुदान के रूप में कुछ धन उन्हें दे जाते थे। नृतक दल के
निकट आने पर कीर्तन में बाधा उत्पन्न हो गई। जनसाधारण खेल-तमाशा देखने में रुचि लेने
लगा। इस प्रकार शान्त वातावरण भँग हो गया। कीर्तन का रस लेने वाले भक्तजन तथा
गुरुदेव ने देखा कि गाना गाते हुए मुख्य नृतक भी स्वयँ नाचने लग गया था तथा उसके
सिर के बाल बिखरे हुए थे, जिनमें नाचने के कारण धूल-गर्दा पड़ रहा था। वह व्यक्ति जो
कि उनका गुरू था अपने शिष्यों के सँकेतों पर नाच रहा था। वह भी केवल चन्द चान्दी के
सिक्कों के लिए, जिससे उदर पूर्ति हो सके। विपरीत जीवन शैली देखकर, गुरुदेव से रहा
न गया उन्होंने, इस सबको अनर्थ की सँज्ञा दी, और यह सब गुरबाणी में कह उठे:
वाइनि चेले नचनि गुर पैर हलाइनि फेरनि सिर ।।
उडि उडि रावा झाटै पाइ वेखै लोकु हसै घरि जाइ ।।
रोटीआ कारणि पूरहि ताल आपु पछाड़हि धरती नालि ।।
राग आसा, अंग 465
गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में कहा कि यह कैसा गुरू है जो माया
प्राप्ति के चक्कर में नाच-नाच कर दिशाहीन जीवन जी रहा है जिसके अनुसार चेलों के
आदेश पर गुरू होते हुए भी जनता के सामने तमाशा बना हुआ है। और लोगों के लिए श्री
कृष्ण तथा श्री राम की कहानियों के स्वाँग भरकर, ऊल-जलूल सँवादो से हंसाकर, केवल
अपनी जीविका का साधन बना हुआ है। वास्तव में यह सब कुछ बिना किसी आदर्श के केवल उदर
पूर्ति का साधन मात्र है। गुरुदेव वहाँ से पँढरपुर चले गए, जहां पर भक्त नामदेव जी
का जन्म स्थान था। वहाँ से गुरुदेव ने उनके अनुयाईयों से भक्त जी की बाणी प्राप्त
करके अपनी पोथी में सँगठित कर ली। इस प्रकार आप जी ने भक्त त्रिलोचन जी, पीपा जी तथा
सैण जी की भी बाणी एकत्र कर ली।