19. कायरता की निंदा (सोम नाथ मन्दिर
के समक्ष, गुजरात)
श्री गुरू नानक देव जी इस तरह जब सोमनाथ के मन्दिर के खण्डहरों
के समक्ष पहुँचे तो वहाँ, स्थानीय जनता ने उनको मुहम्मद गजनवी द्वारा लूटपाट की
करुणामय गाथा सुनाई कि किसी समय में सोमनाथ के मन्दिर का वैभव विश्व-विख्यात था
किन्तु अरबों रुपये की धन-सामग्री, हीरे-मोती, सोना, चांदी इत्यादि को विदेशी
आक्रमणकारी लूटकर ले गए। अब तो वे यादें ही बचीं हैं। यह बात सुनकर गुरुदेव ने उस
दुर्घटना पर समीक्षा करते हुए कहा:
सो जीविआ जिसु मनि वसिआ सोइ ।।
नानक अवरु न जीवै कोइ ।।
जे जीवै पति लथी जाइ ।।
सभु हरामु जेता किछु खाइ ।। राग मांझ अंग 142
गुरुदेव ने स्थानीय जनता के समक्ष अपने प्रवचनों में कहा– आपके
पूर्वजों ने आध्यात्मिक उन्नत्ति के लिए यह मन्दिर बनवाया था, परन्तु वह आप धन
वैभव-ऐश्वर्य के चक्कर में विलासिता का जीवन जीने लगे। जिससे वास्तविक लक्ष्य प्रभु
मिलन, नाम बाणी भूल गए, जिसके बिना आत्मा मर जाती है। मरी हुई आत्मा को भोग-विलास
के अतिरिक्त कुछ सूझता ही नहीं। वह आदर्श के लिए बलिदान देना या अपने प्राणों की
रणक्षेत्र में जूझते हुए आहुति देना मूर्खता समझता है। जिसके प्रणाम स्वरूप यह
खण्डहर उनके चरित्र की मुँह बोलती तस्वीर हैं। अर्थात, जब किसी राष्ट्र, समाज या
व्यक्ति का पतन निकट आता है तो उसके पहले सदगुण नष्ट हो जाते हैं।
जिस नो आपि खुआए करता खुसि लए चंगिआई ।।
राग आसा, अंग 417
जब समाज में आध्यात्मिक उन्नति के स्थान पर पतन हो जाता है तो
प्रकृति स्वयँ उनको दण्डित करती है।