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17. भक्त नरसी का गाँव (जूनागढ़, गुजरात)

श्री गुरू नानक देव जी सुदामा नगरी पोरबन्दर, सीता सुन्दरी से जूनागढ़ पहुँचे। यहाँ भक्त नरसी का गाँव दातागँज पड़ता है। गुरुदेव का वहाँ भक्त जी के अनुयायियों से आध्यात्मिक विचार विमर्श हुआ, जिसके अन्तर्गत गुरुदेव ने त्याग और सेवा की शिक्षा देते हुए कहा, यदि कोई परमेश्वर की प्राप्ति चाहता है तो उसके लिए मन की शुद्धि अति आवश्यक है। मन की शुद्धि प्राप्त करने के लिए निःस्वार्थ भाव से दीन-दुखियों की सेवा करने से बढ़कर और कोई कार्य नहीं। जब सेवा से हृदय पवित्र हो जाए तो आत्मा की खोज में परमात्मा दृष्टि गोचर होता है।

गुरमति क्रिसनि गोवरधन धारे ।।
गुरमति साइरि पाहण तारे ।।
गुरमति लेहु परमपदु पाईऐ नानक गुरि भरमु चुकाइआ ।।
गुरमति लेहु तरहु सचु तारी ।।
आतम चीनहु रिदै मुरारी ।।
जम के फाहे काटहि हरि जपि अकुल निरंजनु पाइआ ।।
राग मारू, अंग 1041

अर्थात यदि कोई अपनी आत्मा का विकास चाहता है कि उसके हृदय में प्रभु का वास हो तो उसे गुरू शब्द की युक्ति से अपनी आत्मा में निरँजन की खोज करनी चाहिए। यदि हृदय सेवा त्याग से शुद्ध हो चुका होगा तो अवश्य ही दिव्य ज्योति के दर्शन होगे तथा आवागमन का चक्कर समाप्त हो जाएगा। यहाँ से गुरुदेव गिरनार पर्वत पर चले गए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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