13. वाम मार्गीयों को उपदेश (भुज नगर,
गुजरात)
श्री गुरू नानक देव जी लखपत के निवासियों की कठिनाइयों का
समाधान करके कच्छ रियासत के प्रमुख नगर भुज में पहुँचे। यह स्थान वाममार्गियों का
केन्द्र था, जो कि आध्यात्मिक जीवन न जीकर व्याभिचार के जीवन को धर्म की सँज्ञा
देकर जन-साधारण को गुमराह कर रहे थे। गुरुदेव ने उन को फिटकारा और कहा–अपराधी जीवन
जीने वाला व्यक्ति कभी भी सत्य के मार्ग का मुसाफिर नहीं हो सकता। अपराधी जीवन जीना
अपने आप को धोखा देना है, जिसका अन्त पश्चातापपूर्ण होता है। यदि कोई वास्तव में
धार्मिक बनना चाहता है तो उसे पहले अपना मन जीतना होगा। मन पर विजय प्राप्त करने से
सँसार पर विजय स्वयँ ही हो जाती है। जब तक हम चँचल प्रवृतियों के पीछे भागते रहेंगे,
हमारी तृष्णा और बढ़ती रहेगी, जिससे हमें कष्टों के अतिरिक्त कुछ प्राप्त होने वाला
नहीं। प्रभु मिलन का एक मात्र रास्ता अपनी तृष्णाओं पर अँकुश लगाना ही है। इस उपदेश
से सभी के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा।