12. दलदल क्षेत्र का पुर्नवास (लखपत
नगर, गुजरात)
श्री गुरू नानक देव जी भीम उड़यार से लखपत नगर नामक स्थान पर
पहुँचे। यह स्थल अरब सागर के निकट कच्छ की खाडी में स्थित है। अतः वहाँ पर छः (6)
माह समुद्र का खारा पानी धरती पर फैल जाता है। किन्तु छः (6) माह धरती साधारण रूप
में सूखकर वीरान सी पड़ी रहती है। कहीं-कहीं दलदल क्षेत्र की सी स्थिति बनी रहती है।
इसलिए वहाँ पर जनसँख्या बहुत कम है परन्तु समुद्र से व्यापार की दृष्टि से आवागमन
बना रहता है। गुरुदेव के वहाँ पहुँचने पर लोगों ने अपनी कठिनाइयाँ उनके सामने रखी
कि उनके घरों को अकसर समुद्री तूफानों के कारण बहुत क्षति उठानी पडती है। सदैव भय
सा बना रहता है। इसलिए यहाँ प्रगति करना असम्भव है। गुरुदेव ने उन्हें कहा कि वह एक
सुरक्षित स्थान चुनकर, वहाँ पर नया नगर बसाकर, स्थाई रूप से बस जायें। तथा परामर्श
दिया कि हम सब मिलकर प्रभु चरणों में प्रार्थना करेंगे। तत्पश्चात् नये नगर की
आधारशिला रखेंगे। सर्वप्रथम इस नगर में एक धर्मशाला का निर्माण करना होगा, जिसमें
आए-गए अतिथि के लिए भोजन की व्यवस्था हो सके। इस प्रकार हम सब पर प्रभु की कृपा
अवश्य ही होगी और हम प्रगति के पथ पर चल पड़ेंगे। गुरुदेव की बताई इस विधि से
स्थानीय जनता ने कार्य प्रारम्भ कर दिया। जिससे नये नगर लखपत की उत्पत्ति सम्भव हुई
तथा वहाँ की जनता का सपना साकार हो गया।