1. दुसरी प्रचार यात्रा (द्वितीय उदासी)
शाह सुहागिन (दीपालपुर, प0-पंजाब)
श्री गुरू नानक देव जी अपने परिवार तथा अपने ससुर मूलचन्द जी से
आज्ञा लेकर पक्खो के रँघवे ग्राम से सन् 1509 के अन्त में दक्षिण भारत तथा अन्य देशों
की यात्रा पर निकल पड़े। श्रीलंका, इण्डोनेशिया, मलेशिया, सिँगापुर इत्यादि। आप जी
वहाँ से लाहौर होते हुए पँजाब के एक नगर दीपालपुर के निकट पहुँचे। वहाँ एक स्थान पर
आपने बहुत भीड़ इकट्ठी देखी। पूछने पर पता चला कि वहाँ एक फ़कीर है जो कि शाह सुहागिन
नाम से प्रसिद्ध है। उस का कहना है कि उसे पूर्णिमा की रात को अल्लाह मियाँ स्वयँ
मिलने आते हैं। अतः वह बहुत सुन्दर सेज बिछाकर तथा स्वयँ बुरका डालकर एक कमरे में
बन्द हो जाता और अपने मुरीदों को आदेश देता कि कोई भी अन्दर नहीं आएगा। क्योंकि उसके
पति परमेश्वर उससे मिलने आने वाले हैं। इसलिए कोई उनके मिलन में बाधा न डाले। इस
प्रकार सुबह होने पर वह जनसमूह को दर्शन देता तथा कहता कि उसे रात्रि को अल्लाह मियाँ
मिले थे इसलिए मैं उसकी सुहागिन पत्नी हूँ। यह किस्सा जब गुरुदेव को ज्ञात हुआ तो
उन्होंने कहा यह सब कुछ पाखण्ड है। अल्लाह मियाँ कोई शरीरधारी व्यक्ति नहीं, वह तो
एक ज्योति हैं, शक्ति हैं, जो अनुभव की जा सकती है। वह तो समस्त ब्रह्माण्ड में
विद्यमान हैं। कोई भी ऐसा स्थान नहीं जहाँ पर वह न हो। इसलिए एक दम्पति की तरह का
मिलन होना बिलकुल झूठी बात है। फिर क्या था, कुछ एक मनचले युवकों ने तुरन्त इस बात
की परीक्षा लेने के लिए बलपूर्वक उस कोठरी का दरबाजा तोड़ दिया, जहां शाह सुहागिन ने
अल्लाह मियाँ से मिलन होने की अफवाह फैला रखी थी। दरवाजा खुलने पर लोगों ने शाह
सुहागन को रँगे हाथों व्याभिचार करते पकड़ लिया। किन्तु गुरुदेव ने बीच बचाव करके
पाखण्डी फ़कीर को लोगों से पिटने से बचा लिया। इस घटना के पश्चात् समस्त नगर में शाह
सुहागिन की निन्दा होने लगी। शाह सुहागिन की आय का साधन चौपट हो गया।