SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

7. वैष्णव साधु का खण्डन (हरिद्वार, उत्तर प्रदेश)

अगले दिन सुबह गुरुदेव ने अपने खेमे के बाहर भोजन व्यवस्था करने के लिए मरदाना जी को कहीं से आग माँगकर लाने को भेजा। वह निकट के एक खेमे के पास आग जलती देखकर, वहाँ से आग लेने पहुँचे। उस समय वहाँ पर एक कर्मकाण्डी वैष्णव साधु भोजन तैयार कर रहा था। उस साधु ने पवित्र रसोई तैयार करने के लिए चूल्हे को गोबर से लीपा था तथा रसोई के चारों तरफ एक रेखा मँत्र पढ़कर खीची थी। जिसे वे लोग कारी निकालना कहते थे। उन लोगों की मान्यताएं थी कि कारी खीचने से अर्थात चारो तरफ रेखा खींचने से कोई प्रेत आत्मा उसके भोजन का रसपान नहीं कर पायेगी। मरदाना जी ने उससे अनुरोध कियाः कृपा करके कुछ अँगारे देने का कष्ट करें जिससे हम भी आग जलाकर भोजन तैयार कर सकें। तब वैष्णव साधु ने मरदाना जी को क्रोध से देखा और कहाः कि तुम मलेच्छ मालूम होते हो। तुम्हारी परछाई मेरे पवित्र भोजन पर पड़ गई है। वह भ्रष्ट हो गया है। मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं। साथ ही वह साधु जलती हुई एक लकड़ी लेकर भाई मरदाना जी को मारने दौडा। यह देखकर मरदाना जी वापिस भाग लिए। मरदाना जी आगे–आगे और साधु भद्दी गालियाँ देता हुआ उन के पीछे–पीछे दोनों गुरुदेव के खेमे में पहुँच गए। तब मरदाना जी ने गुरुदेव जी से निवेदन कियाः कृपा करके इसके प्रकोप से बचाएँ। जैसे ही उस साधु ने गुरुदेव को देखा वह झेंपा। तथा शिकायत भरे अन्दाज में कहने लगाः कि इस नीच जाति के व्यक्ति ने मेरी रसोई अपवित्र कर दी है। गुरुदेव ने उसे अपने पास बुलाया किन्तु तेज स्वर की गालियों तथा झगड़े की आवाज सुनकर चारों ओर भीड़ इकटठी हो गई। यह देखकर गुरुदेव ने सबको सम्बोधन करते हुए कहाः इस साधु का कहना है, हमारा यह शिष्य नीच है, परन्तु यह सिद्ध करे कि यह किस प्रकार नीच है तथा वह स्वयँ किस प्रकार ऊँच है ? अब साधु के पास कोई तर्क तो था नहीं। गुरुदेव ने कहाः कि मैं बताता हूँ नीच व्यक्ति वह हैं जो बिना किसी कारण दूसरो को क्रोध में भद्दी गालियाँ देता है। क्योंकि उस के अन्दर चंडाल क्रोध का वास है तथा दूसरों के प्रति हृदय में दया नहीं। यह उस का कसाईपन है। बिना कारण दूसरों की निन्दा करनी यह कर्म हृदय में बस रहे चंडाल का है। वास्तव में यह कार्य बुद्धिविहीन व्यक्ति जैसा है। जो बिना विचारे अंधविश्वास में उस प्रभु की सृष्टि का वर्गीकरण करके स्वयँ को ऊँच तथा दूसरो को नीच कहता है। जबकि प्रभु ने सबको शारीरिक दृष्टि से पूर्णतया एक जैसा बनाया है, वह तो सर्वव्याप्क है। उपरोक्त उपदेश का बाणी रूपः

कुबुधि डूमणी कुदइया कसाइणि पर निंदा घट चुहड़ी मुठी क्रोधि चंडालि।।
कारी कढी किआ थीऐ जां चारे बैठीआ नालि ।।  सिरी रागु, पृष्ठ 91

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.