6. कुम्भ मेला (हरिद्वार, उत्तर
प्रदेश)
गुरू नानक देव जी धीरे–धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए एक दिन ‘हरिद्वार’ पहुँच गये।
वहाँ कुछ दिनों में वैसाखी के शुभ अवसर पर मेला लगने वाला था। अतः आप ने एक रमणीक
स्थल देख कर गँगा के किनारे रेत के मैदान में अपना डेरा स्थापित कर लिया। जनता दूर–दूर
से पवित्र गँगा स्नान के लिए आ रही थी। मेले के कारण दूर–दूर तक साधू सँन्यासियों
के खेमे लगे दिखाई दे रहे थे। कहीं भी कोई रिक्त स्थान नहीं दिखाई दे रहा था। ऐसा
जान पड़ता था कि सभी लोग गँगा स्नान के लिए पधारे हैं। अगली सुबह बैसाखी का शुभ पर्व
था अतः ब्रह्ममुहूर्त में स्नान प्रारम्भ होना था इसलिए गुरुदेव ने हरि की पौड़ी
नामक घाट पर सूर्य उदय होने के कुछ क्षण पहले गँगा स्नान के लिए अपना स्थान बना लिया।
जैसे ही सूर्य की प्रथम किरण दिखाई दी गुरुदेव ने तुरन्त सूर्य की तरफ पीठ करके
पश्चिम के ओर जल किनारों पर फेंकना आरम्भ कर दिया। इस आश्चर्य को देख कर वहाँ खड़ी
भीड़ जो कि स्नान करने की प्रतीक्षा में थी चारो ओर इकट्ठी हो गयी। अतः परम्परा के
विपरीत कार्य देखकर कौतुहल वश गुरुदेव के निकट आ कर कहने लगेः आप भूल में हैं पूर्व
दिशा आपके पीछे है, पानी उस तरफ चढ़ाएँ। परन्तु गुरुदेव ने उनका कहा, अनसुना कर
दुगुनी गति से पानी पश्चिम की ओर फैंकना आरम्भ कर दिया। यह सब देख कर एक व्यक्ति ने
साहस करके पूछ लियाः वह पानी कहाँ दे रहे हैं। गुरुदेव ने उत्तर न देकर उस पर
प्रश्न कियाः आप पानी कहाँ दे रहे हैं ? वे सब कहने लगेः हम लोग तो अपने पूर्वजों
को पितृ लोक में पानी दे रहे हैं। जो कि सूर्य के पास में हैं। गुरुदेव ने उन लोगों
से फिर पूछाः वह स्थान कितनी दूरी पर है ? वे लोग कहने लगेः वह स्थान यहाँ से लाखों
कोस दूरी पर कहीं स्थित है। इस पर गुरुदेव ने पुनः उसी प्रकार पश्चिम की तरफ जल फेंकना जारी
रखा। यह सब देखकर उन से न रहा गया। वे लोग गुरुदेव से फिर से पूछने लगेः आप पानी कहाँ
दे रहे हैं ? तब गुरुदेव ने उत्तर दियाः मैं पँजाब में अपने खेतों को पानी दे रहा
हूँ क्योंकि वहाँ पर इन दिनों वर्षा नहीं हुई। यह उत्तर सुनकर, वहाँ पर सभी लोग
हंसने लगे। उस समय गुरुदेव ने पूछाः इसमें हंसने की क्या बात है ? कुछ लोग कहने लगेः
आपके खेत लगभग 300 कोस दूर हैं। अतः आपका पानी वहाँ कैसे पहुँच सकता है। जबकि यह
पानी तो यहीं नदी में वापिस गिर रहा है। अब गुरुदेव ने कहाः यही तो मैं आप को कहना
चाहता हुँ, यह फोकट कर्मकाण्ड न करें। आपका पानी भी नदी में गिर रहा है वह किसी पितृ
लोक आदि स्थान पर नहीं पहुँचता। यह पितृ लोक वाली सभी बातें मन घढ़न्त तथा कौरी
कल्पना मात्र है। वास्तव में कुछ चतुर लोगों ने अपनी उदर पूर्ति के लिए, जनसाधारण
को भ्रम में डालकर गुमराह किया हुआ है। इन बातों का आध्यात्मिक जीवन से दूर का भी
नाता नहीं है। यह सब कर्म निष्फल चले जाते हैं क्योंकि अँधविश्वास व्यक्ति को कूएँ
में धकेल देता है। सभी लोग इस तर्क को सुन कर बहुत लज्जित हो रहे थे। उन्होंनें उसी
समय पानी सूर्य की ओर उछालना बन्द कर दिया। यह घटना जँगल की आग की तरह सम्पूर्ण मेले
में फैल गई। सभी बुद्धि जीवी लोग गुरुदेव से आध्यात्मिक विचार–विनियम करने के लिए
उन के खेमें में पहुँचने लगे। गुरुदेव ने सभी जिज्ञासुओं को एक ईश्वर में विश्वास
करने तथा कर्मकाण्ड, फोकट कर्म से मना करते हुए कहा कि यह शरीर आध्यात्मिक दुनियाँ
में गौण है। वहाँ तो मन की शुद्धता को ही स्वीकार किया जाता है। केवल शरीर के गँगा
स्नान से परमार्थ की आशा न करें।