58. परिवार से पुर्न मिलन (तलवण्डी से
पक्खों के रंधवे ग्राम)
श्री गुरू नानक देव जी सुलतानपुर की संगत तथा बहन नानकी जी से
आज्ञा लेकर तलवण्डी पहुँचे। गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को कहा कि आप अपने घर जाएँ
ततपश्चात् मेरे माता पिता जी से भी मिलें परन्तु मेरे विषय में किसी को भी कुछ बताने
की आवश्यकता नहीं, बस शाँत रहना। मैं यहाँ नगर के बाहर विराने में एकान्तवास करना
चाहता हूँ। भाई मादाना ने शंका व्यक्त की: गुरुदेव यह कैसे सम्भव है, कि मैं घर जाऊँ
और आपके विषय में न बताऊँ जब कि सभी लोग आपके बारे में ही पूछेंगे ? गुरुदेव कहने
लगे: कि आप तो जहां तक हो सके मौन ही रहना। भाई मरदाना जी पहले अपने परिवार से मिलने
गए, ततपश्चात् माता तृप्ता जी को मिले। माता जी ने उनको अकेला देखकर कई तरह के
प्रश्न पूछे, किन्तु मरदाना जी चुप्पी साधे रहे। माता जी ने मरदाना जी की
मुस्कुराहट से अनुमान लगा ही लिया कि नानक वहाँ पर आया तो होगा ही परन्तु साधु-वेश
के कारण घर पर आने से कतराता होगा। अतः उन्होंने मेहता कालू जी के घर पर लौटते ही,
कुछ खाद्य वस्तुएँ साथ ले लीं और नानक जी को खोजने निकल पड़ीं। उनको जल्दी ही एक
विरान स्थान पर नानक जी मिल गए। माता-पिता को देखकर नानक जी ने उनका भव्य स्वागत
करते हुए चरण स्पर्श किये, माता जी ने नानक जी को आलिंगन में लेकर घर पर चलने का
आग्रह किया किन्तु नानक जी घर चलने पर सहमत नहीं हुए। इतने में राय बुलार जी, खबर
पाते ही नानक जी से मिलने वहाँ पहुँच गये। नानक जी ने उनका भी भव्य स्वागत किया
किन्तु वह गुरुदेव के चरण स्पर्श करना चाहते थे। परन्तु गुरुदेव ने उनको झुकने से
पहले ही थाम लिया। उन्होंने कहा: बेटा मैं अब वृद्ध अवस्था में हूँ। न जाने कब
अल्लाह मियाँ का बुलावा आ जाए, इसलिए मैं तुझे देखकर अपना मन तृप्त करना चाहता हूँ।
अतः आपको मेरे घर पर चलना चाहिए। गुरुदेव उन के स्नेह के आगे झुक गए और उनके साथ
उनके घर पर पहुँचे। तलवण्डी के सभी निवासी राय जी के यहाँ, गुरुदेव के दर्शनों के
लिए उमड़ पड़े। गुरुदेव ने अपने प्रवचनों से सभी की शँकाएँ निवारण की तथा नाम वाणी का
महत्व बताया कि मानव जीवन का मुख्य प्रयोजन आवागमन से छुटकारा पाना है। अतः उसके
लिए एक मात्र साधन प्रभु नाम ही है जो वाणी अथवा कीर्तन श्रवण करने से सहज प्राप्त
हो जाता है। इसलिए सतसँग में आना अति आवश्यक है। उन दिनों गुरुदेव की पत्नि सुलक्खणी
जी अपने मायके पक्खो के रँधवे नगर, अपने छोटे बेटे लक्खमीदास के साथ रहने गई हुई
थीं। अतः कुछ दिन तलवण्डी निवास करने के पश्चात, गुरुदेव अपने ससुराल, भाई मरदाना
जी सहित पहुँचे। पत्नी तथा बच्चों के लिए यह अत्यँत प्रसन्नता का शुभ अवसर था पूरे
12 वर्षो के पश्चात् मिलन हुआ था। बाबा मूलचन्द जी उन दिनों वहाँ के पटवारी थे।
परन्तु वृद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुके थे। वहीं के चौधरी अजीते रँधवे ने प्रार्थना
की कि आप यही पर स्थाई निवास स्थान बनायें, गुरुदेव ने उसे आश्वासन दिया कि हम इस
सुझाव पर ध्यानपूर्वक विचार करेंगे। मूलचन्द जी ने कहा: बेटा। मेरे उत्तराधिकारी
तुम ही हो क्योंकि मेरी केवल एक ही बेटी है। अतः मेरे देहावसान के पश्चात् सब कुछ
तुम्हारा ही है। इसलिए धन की चिन्ता न करो। यहाँ कहीं भी भूमि खरीदकर कृषि कार्य करो।
यह सुनकर गुरुदेव ने कहा, पिता जी ठीक है मैं आपकी इच्छा अनुसार यहीं कहीं अपना
स्थाई निवास बना लूँगा। इस कार्य के लिए आप पड़ोस में ही भूमि खरीदने की व्यवस्था करें।
किन्तु मैं देशाटन का बाकी रहता कार्य निपटा लूँ तभी स्थाई रूप से किसी एक स्थान को
अपना निज़ी स्थान बनाऊँगा। इस पर मूलचन्द जी ने कहा, ठीक है मैं तुम्हारे लिए रावी
नदी के तट पर आबाद क्षेत्र में कोई भूमि खरीद रखूँगा। क्योंकि यहाँ बहुत कम दामो
में भूमि मिलने की सम्भावना है।