53. नारी जाति का सम्मान (करनाल, हरियाणा)
श्री गुरू नानक देव जी पानीपत से प्रस्थान करके करनाल पहुँचे। आपने अपने स्वभाव
अनुसार समाज के निम्न वर्ग के लोगों के मोहल्ले में ठिकाना किया आप जी ने एक पीपल
के वृक्ष के नीचे प्रतिदिन कीर्तन करना प्रारम्भ कर दिया, कीर्तन के पश्चात्
जिज्ञासुओं के लिए प्रवचन भी करते, जिस कारण वहाँ पर धीरे-धीरे सँगत बढ़ने लगी। एक
पीड़ित महिला ने आपके पास फरियाद की कि उसे परिवार के मुख्य स्दस्य बहुत सताते हैं
तथा हीन दृष्टि से देखते हैं क्योंकि उसने उनकी इच्छा अनुसार लड़कों को जन्म नहीं
दिया बल्कि लड़कियाँ ही जन्मी हैं। यह सुनकर गुरुदेव ने उसे धैर्य बन्धाया और कहा,
सब कुछ उस प्रभु के हाथ में है। कल आप अपने पति और सास को प्रेरित कर हमारे पास लाएं।
दूसरे दिन वह महिला अपने पति तथा सास को साथ ले आई। गुरुदेव ने तब कीर्तन करते समय
यह शब्द उच्चारण किया:
भंडि जमीऐ भंडि निंमीऐ भंडि मंगणु वीआहु।
भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु ।।
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु ।।
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जंमहि राजान ।। राग आसा, अंग 473
इसके अर्थ बताते हुए गुरुदेव ने कहा कि महिलाएँ, समाज की शक्ति
हैं। हमें महिलाओं को हीन दृष्टि से देखकर उनकी निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि
महिलाएँ ही माता के रूप में सभी की जननी है समाज जिनकी निन्दा करता है वही भंड
अर्थात महिलाएँ बड़े-बड़े महापुरुषों तथा चक्रवर्ती राजाओं-महाराजाओं को भी जन्म देती
हैं। यदि हम सच्चे हृदय से विचारें तो ‘भंड’ अर्थात महिलाओं के बिना इस मानव समाज
की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रत्येक स्थान पर स्त्री की अति आवश्यकता है यदि
हमारी इच्छा अनुसार सबके यहाँ लड़के ही जन्मे तो फिर यह सँसार आगे कैसे चलेगा। अतः
प्रकृति के कार्यो में हस्तक्षेप करना उचित नहीं। उस की रजा में ही राजी रहना चाहिए।
इसी में सबका भला है। यह सीख सुनकर, उस महिला का पति तथा सास अपने भाग्य पर
सन्तुष्ट हो गए और उन्होंने शपथ ली कि वे दोबारा इस बात को लेकर कभी भी व्यँग नहीं
करेंगे। गुरुदेव कुछ ही दिनों में सूर्य ग्रहण के मेले के कारण कुरूक्षेत्र मेले के
लिए प्रस्थान कर गए।