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52. शेख शरफ (पानीपत, हरियाणा)

श्री गुरू नानक देव जी दिल्ली से पँजाब लौटते समय पानीपत नगर में ठहरे। उन दिनों पानीपत में शेख शरफ़ नामक फ़कीर बहुत प्रसिद्धि पर था। यह शेख अपने पूर्वज फ़कीर बूअली कलन्दर उर्फ शेख सरफउदद्दीन की मजार पर निवास करता था तथा उसकी पूजा अपने मुरीदों सहित किया करता था। जनसाधारण में इनकी खयाति एक कामिल फ़कीर के रूप में थी। अतः लोग दूर-दूर से मन्नते माँगने मजार पर आते थे। एक दिन शेख शरफ का मुरीद शेख टटीहरी, पानी लेने पनघट पर पहुँचा तो वहाँ पर उसने बहुत भीड़ देखी जो कि शाँत एकाग्र होकर गुरुदेव के कीर्तन श्रवण का आनंद ले रही थी। वह भी पानी ले जाना भूलकर, कीर्तन श्रवण करने लगा। उसके मजार पर गाए जाने वाली कवालियाँ फीकी मालूम होने लगी। वह सोचने लगा कि यदि गुरुदेव भी मजार पर चलें तो उस क्षेत्र में उनकी धाक जम जाएगी। इसलिए वह कीर्तन समाप्ति पर गुरुदेव से मिला। उसने बहुत अदब से कहा: सलाम–ए–लैकम। उत्तर में गुरुदेव ने उसे कहा: सलाम–अलेक।  मुरीद कुछ चकित हुआ तथा उसने पूछा: सलाम–अलेक का क्या अर्थ हुआ। तो गुरुदेव ने उत्तर दिया: आपने हमें कहा है सलाम–ए–लैकम, अर्थात आप को शान्ति मिले किन्तु हमने आप को कहा है आपको वह अल्लाह शान्ति प्रदान करे, क्योंकि शान्ति केवल और केवल एक मात्र अल्लाह ही दे सकता है। पानी लेकर मुरीद टटहिरी वापस पहुँचकर अपने मुरशद शेख शरफ को गुरुदेव से मिलाने ले आया। शेख शरफ ने गुरुदेव जी से अनेक प्रश्न किये तथा कहा: आपने लम्बे-लम्बे केश क्यों धारण किये हुए है जबकि सभी उदासी वर्गों में सिर मुँडवा लेते हैं। उत्तर में गुरुदेव ने कहा: मैने, माया त्यागी है गृहस्थ नहीं। मैं संसारिक व्यक्ति हूँ। वास्तव में केश तो सुन्दरता के प्रतीक हैं। तथा मनुष्य को प्रकृति का अदभूत उपहार है यदि केश न होते तो मनुष्य कुरूप होता। मूँछे, पुरुष तत्व की प्रतीक हैं अर्थात वीरता, शौर्य की प्रतीक हैं, दाढ़ी दैवी गुणों की प्रतीक है। दाढ़ी एवँ मूँछे प्रकृति के नियमों के अनुसार केवल बालिग होने पर पुरुषों को ही प्रदान की गई र्है स्त्रियों को नहीं। प्रकृति के इस रहस्य को हमें समझना चाहिए तथा हमें उसका अनुसरण करना चाहिए। शेख शरफ के आग्रह पर गुरुदेव उसके डेरे पर गए। जहां उनके पूर्वज फ़कीरों के मजार थे किन्तु गुरुदेव ने मजार की पूजा पर भारी आपत्ति की और कहा जो लोग अंधविश्वास में मुर्दों की पूजा करते हैं। उन की इबादत को फल नहीं लगता और उनका परीश्रम निष्फल चला जाता है। पूजा केवल निराकार ज्योति स्वरूप शक्ति, अल्लाह की करनी चाहिए, किसी व्यक्ति विशेष की नहीं। यहीं सुनहरी सिद्धांत इस्लाम का भी है। जिस पर पहरा देना आप का काम है। शेख ने अपनी भूल स्वीकार की और कहा: आप मेरा मार्ग दर्शन करें ताकि मेरा कल्याण सम्भव हो सके। तत्पश्चात् उन्होंने शरीअत, तरीकत तथा मारफत के विषय में अपनी शँकाओं का समाधन किया और कहा कि आप विरक्त और त्याग वृति के दरवेश हैं। इसलिए वैराग्य में उतावलापन नहीं होना चाहिए, क्योंकि "सहज पके सो मीठा होय" आपको धैर्य की अति आवश्यकता है। अतः प्रभु ज्योति दर्शन की प्राप्ति का मार्ग सहज का मार्ग है, इसमें हठ से कुछ नहीं होता, नाहीं उतावलेपन से। शेख शरफ कहने लगे: गुरुदेव ! आप मुझे कुछ नियम दृढ़ करा दें, जिससे प्रभु का अनुग्रह प्राप्त हो। गुरुदेव जी ने कहा: कि द्वैत को त्याग दो दमन, अत्याचार के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करो, नम्रता ग्रहण करो। सभी कर्मो के बन्धनों से मुक्त हो जाओगे। शाह शरफ सन्तुष्ट हो गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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