50. केशव देव मन्दिर (मथुरा, उत्तर
प्रदेश)
श्री गुरू नानक देव जी आगरा से मथुरा के केशव देव मन्दिर के निकट जा बिराजे। उन दिनों
केशव देव मन्दिर एक छोटा सा भवन था। गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को कीर्तन करने का
आदेश दिया। मधुर वाणी सुनकर वहाँ का पुजारी तथा बहुत से भक्तगण, जो कि तीर्थ यात्रा
पर आए हुए थे, गुरुदेव के पास जाकर बैठ गए। कीर्तन की समाप्ति पर भक्तजनों ने अपनी
जिज्ञासा व्यक्त की: हे ! गुरुदेव, हम लोग यहाँ मथुरा में कल्याण हेतु यात्रा करने
आए हैं। परन्तु उनका मन बहुत दुखी हुआ है और उनकी श्रद्धा भावनाओं को बहुत ठेस
पहुँची है। क्योंकि वे जहां भी गए हैं वहीं पर झूठ को ही प्रधान पाया है। उनको भगवान का तो भय है ही नहीं, जिन लोगों ने धर्म का प्रचार करना था वह स्वयँ अधर्म के
कार्यो में, विनाश के मार्ग पर चल रहे हैं। यह सब सुनकर गुरुदेव कहने लगे: कि
भक्तजनों बात यह है, आप लोग इनको जो रुपये दान दक्षिणा में देते हों वह धन इतना
अधिक होता है कि यह लोग उस धन का दुरोपयोग करना प्रारम्भ कर देते हैं जिससे इन का
मन मलीन हो जाता है तथा धीरे-धीरे सँस्कार भ्रष्ट बन जाते हैं वास्तव में जो लोग
परीश्रम न करके, दान में मिले रुपयों से, अय्याशी विलासिता का जीवन व्यतीत करते
हैं, वे आचरण से गिर जाते हैं। पुजारी ने कहा: बात यह है कि "यह समय कलयुग का है"
इसलिए "चरित्रवान" होना सम्भव नहीं। गुरुदेव जी ने कहा: पुजारी जी, आप अपने को धोखा
देने के लिए मन में झूठा भ्रम पाले बैठे हैं। वास्तव में कलयुग क्या है ? किसी
विशेष वस्तु का नाम है ? नहीं ! वह मन की एक अवस्था का नाम है। जहां बुरी विचारधारा
के लोग होंगें तथा कुसँगत करेंगे। वहाँ कलहकलेश अर्थात वहाँ कलयुग है। जहां शुभ
विचारों वाले लोग सतसँग करेंगें वहीं सतयुग है। आप ही बताएँ, सत युग या कलयुग में
प्रकृति ने अपना कोई स्वरूप बदल लिया है। आकाश, सूर्य, चन्द्रमाँ, तारे, बनस्पत्ती
इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और नदियाँ नाले भी नहीं बदले। वास्तव में हमारी
विचारधारा मे अन्तर आ गया है। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार कोई अपनी आजीविका कमाएगा
वैसा ही उसके विचार बनेंगे तथा वैसे ही आचरण करेंगा। यानी जैसा कोई अन्न खाएगा वैसा
ही उसका मन होगा। गुरुदेव ने तब शब्द उच्चारण किया:
सोई चंदु चड़हि से तारे सोई दिनीअरु तपत रहे ।।
सा धरती सो पउणु झुलारे, जुग जीअ खेले थाव कैसे ।। 1 ।।
रामकली, अंग 902
जिज्ञासु जन ने कहा: हे ! गुरुदेव आप हमें कल्याण के लिए मार्ग
बताएँ ? गुरुदेव जी ने कहा: जीवन में सहज भाव से सभी कार्य करें। प्रकृति के नियमों
को समझकर उसमें समाएँ। प्रभु को प्रत्येक स्थान पर उपस्थित जानकर उसके भय में जीना
ही कल्याणकारी है:
सहजि मिलै मिलिआ परवाणु ।। ना तिसु मरणु न आवणु जाणु ।।
ठाकुर महि दासु दास महि सोइ ।।
जह देखा तह अवरु न कोइ ।। जन्म साखी