48. बन्धुआ मजदूरों को मुक्ति (रुहेलखण्ड,
कानपुर में)
श्री गुरू नानक देव जी नेपाल से लौटकर रुहेलखण्ड पहुँचे। वहाँ पर एक बहुत बड़ा
व्यापारिक केन्द्र था। जहां पर पशु मंडी लगाई जाती थी। लोग क्रय-विक्रय,
खरीद-फरोख्त करने के लिए दूर-दूर से आते थे। अतः व्यापार के कारण स्थानीय जन जीवन
खुशहाल था। किसानों-व्यापारियों तथा अमीर लोगों को खेतीहर मज़दूरों, घरेलू नौकरों और
दासों आदि की भी अति आवश्यकता रहती थी। इसलिए वहाँ के लोग बन्धूआ मज़दूरों की तलाश
में रहते थे। कुछ असामाजिक तत्व भी गरीब लोगों की मज़बूरी का अनुचित लाभ उठाते हुए,
उनको बहला-फुसला कर अच्छी मज़दूरी का लालच देकर आदिवासी क्षेत्रों से लाकर बन्धुआ
मज़दूरी के लिए बेच देते थे। इस प्रकार कुछ अवाँछनीय तत्व बच्चों तथा स्त्रियों को
बेचने के घृणित कार्य में सँलगन रहते थे। गुरुदेव जब भीड़ भाड़ वाले पशु मेला क्षेत्र
में भाई मरदाना जी के साथ कीर्तन कर रहे थे तो वहां, आपके पास एक बिलखती हुई महिला
आई और आपके समक्ष प्रार्थना करने लगी कि उसके बच्चों को एक दलाल अच्छी मज़दूरी पर
काम दिलवाने के बहाने यहाँ ले आया था। उसने बच्चों को यहाँ बेच दिया है अब उनका कोई
पता ठिकाना नहीं मिल रहा। ना जाने वे किस हाल में होंगे ? कृप्या आप मेरी सहायता करें
तथा उस दलाल से मालूम करवा दें कि वे कहाँ पर हैं ? गुरुदेव जी, इस दुखान्त को
सुनकर गम्भीर हो गए और कहने लगे, आप धैर्य रखें हम इस सामाजिक कलँक को मिटाने के
लिए कुछ करते हैं, परन्तु इस काम में कुछ समय अवश्य लगेगा। यह अश्वासन प्राप्त करके
वह महिला कहने लगी, ठीक है, मुझे तो मालूम करना है मेरे बच्चे कुशल मँगल तो है न।
इस पर गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को कुछ रहस्यमय बात बताई तथा आदिवासीओं जैसी
वेष-भूषा पहनकर दलालों के आगे, अनजान व्यक्ति बनकर निकल गए। आदिवासी वेष में देखते
ही दलालों ने उन्हें अपना शिकार समझकर घेर लिया और कहा, अरे तू कहाँ भाग गया था। तू
तो हमारा दास है। वे जल्दी ही गुरुदेव जी को पकड़कर मँडी में बेचने के लिए ले गए।
गुरुदेव ने भी कोई प्रतिरोध न किया। मँडी में गुरुदेव की बोली लगाई गई। हष्ट-पुष्ट
होने के कारण उनके दाम बहुत उँचे लगने लगे अन्त में एक अमीर व्यक्ति ने उनको घोड़ों
के मूल्य पर खरीद लिया तथा ले जाकर एक पीर को भेंट में प्रस्तुत कर दिया। पीर जी
प्रसन्न हुए। गुरुदेव उसकी गुलामी करने लगे। पीर जी जो कहते वह सब कुछ तुरन्त कर
देते। घँटों का कार्य मिनटों मे निपटा देते। पीर जी आश्चर्यचकित होने लगे कि ऐसा
आज्ञाकारी दास उन्होंने पहले कभी नहीं देखा जो कि मन लगाकर काम करता हो और बदले में
किसी वस्तु की इच्छा भी न करता हो। एक दिन भोर के समय एकान्त में गुरुदेव गाने लगे:
मुल खरीदी लाला गोला मेरा नाउ सभागा ।।
गुर की बचनी हाटि बिकाना जितु लाइआ तितु लागा ।।
तेरे लाले किआ चतुराई ।।
साहिब का हुक्मु न करणा जाई ।। राग मारू महला 1, अंग 991
अर्थ: हे ! प्रभु मैं आपकी आज्ञा अनुसार बिक गया हूँ। मैं
भाग्यवान हूँ क्योंकि तेरे आदेश को पालन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। आप जिस
कार्य में मुझे लगाओगे मैं उसको करने का प्रयत्न करूँगा परन्तु मैं अल्पज्ञ हूँ
क्योंकि मुझमें सूझ-बूझ कम है अतः मुझसे अपने स्वामी की आज्ञा पालन पूर्णतः करने
में कोर-कसर रह जाती है। गुरुदेव के गाने की मधुर धुन से आकर्षित होकर पीर जी ने
गुरुदेव की वाणी में अपने मन को जोड़ लिया। शब्द की समाप्ति पर उसने गुरुदेव के नूरी
चेहरे के दीदार किए तो वह जान गया कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं, तथा वह सोचने लगा
कि गुलाम के रूप में कौन हो सकता है ? जो कि वास्तव में तेजस्वी है। अतः उसने
गुरुदेव से प्रश्न किया: कि आप कौन है ? और आपका मेरे यहाँ गुलाम बनकर आने का क्या
रहस्य है ? उत्तर में गुरुदेव ने कहा: कि तुम पहचानने का प्रयत्न करो, तुम्हारी
चेष्टा व्यर्थ नहीं जाएगी। कुछ सोचते हुए, पीर कहने लगा: मैंने नानक जी नाम के एक
फ़कीर की बहुत उपमा सुनी है, कहते हैं उसके कलाम में जादू की तासीर है कहीं आप वही
तो नहीं ? जिसे लोग नानक निरँकारी कहते हैं। उत्तर में गुरुदेव ने कहा: आपने ठीक
पहचाना है। पीर ने प्रश्न किया: आप श्री नानक निरँकारी फ़कीर हैं तो आप पशुओं की तरह
क्यों बिके हैं, क्या आपको मालूम नहीं था कि यहाँ अजनबी लोगों को दास बना लिया जाता
है ? गुरुदेव जी ने कहा: कि हमें मालूम था, इसीलिए दास बन कर आया हूँ कि दासों की
दास्तान जानी जाए, फिर इस बुराई के लिए आँदोलन प्रारम्भ किया जाए। पीर ने कहा: कि
क्या आप को पूरा भरोसा है कि आप इस नेक कार्य में सफल हो जाएंगे ?गुरुदेव जीने कहा:
कि हां, मैं "पूर्ण विश्वास" के साथ इस बुराई के विरुद्ध समाज में जागरुकता लाने के
लिए आँदोलन आरम्भ करने के लिए गुलाम बना हूँ। क्योंकि मुझे मालूम है नेकी करना
इन्सान का काम है और बुराई करना शैतान का काम है। मैं समाज में नेकी के असूल की
लड़ाई लडूँगा। पीर यह सुनकर गुरुदेव के चरणों में गिर गया। उस ने अपने सभी नामवर
पठानों को जो कि उस के मुरीद थे बुला भेजा और गुरुदेव से उनको नेक आचरण करने का
उपदेश दिलवाया कि कोई इन्सान दूसरे इन्सान को जानवरों की तरह गुलाम नहीं रख सकता
क्योंकि यह बात खुदा प्रस्ती के खिलाफ है। यह सुनकर सबने गुलामों को आज़ाद कर दिया।