46. तीन-सूत्रीय कार्यक्रम (नानकिँग
नगर, चीन)
श्री गुरू नानक देव जी शँघाई बन्दरगाह में एक धर्मशाला बनवाकर वहाँ पर सतसँग की
स्थापना करके आगे वहाँ के एक प्रमुख नगर, जो कि उस समय एक व्यापारिक नगर था, उसमें
पहुँचे जिसे आजकल नानकिँग कहते हैं। चीनी लोगों के अनुसार जब गुरुदेव वहाँ पधारे तो
जनसाधारण उनकी प्रतिभा से इतना प्रभावित हुआ कि उन्होंने अपने नगर का नाम बदलकर श्री
गुरू नानक देव जी के नाम पर रख लिया। वहाँ गुरुदेव ने रूढ़ीवादी विचारों तथा भ्रमों
के खिलाफ आँदोलन चलाया। समानता के अधिकारों की बात समाज के सामने रखी, पूँजीवाद के
शोषण के विरुद्ध जागृति लाने के लिए तीन-सूत्री कार्यक्रम को जनता के सम्मुख रखा।
किरत करो, वण्ड छको तथा नाम जपो यानि ईमानदारी का करम करो, बाँट के खाओ और परमात्मा
का नाम जपो। जिस कारण गुरुदेव को भारी सफलता मिली और जल्दी ही वे लोकप्रिय हो गए।
वहाँ पर भी गुरुदेव ने धर्मशाला बनवाकर सतसँग की स्थापना की। श्री गुरू नानक देव जी
लगभग पाँच वर्ष चीन में रहे फिर वहाँ से सीधे वापस ल्हासा होते हुए नेपाल की राजधनी
काठमाँडू पहुँचे। (नोट: चीनी भाषा की अनभिज्ञता के कारण हमारे इतिहासकारों ने श्री
गुरू नानक देव जी की चीन यात्रा पर खामोशी धारण कर रखी थी। परन्तु सन 1950 में जब
पण्डित जवाहर लाल नेहरू चीनी प्रधान मंत्री चूऐनलाई से पीकिंग में मिले तो उन्होंने
पण्डित जी को बताया कि उनके साँस्कृतिक सम्बंध बहुत पुराने एवँ घनिष्ट हैं क्योंकि
गुरू नानक देव जी यहाँ पर आध्यात्मिक उपदेश देने लगभग 450 वर्ष पूर्व आए थे। उनकी
विचारधारा की अमिट छाप आज भी हमारे समाज में देखी जा सकती है तथा उनकी कुछ यादगारें
हमारे सँग्रहालयों में आज भी सुरक्षित रूप में पड़ी हुई हैं। उनकी शिक्षा का ही
परिणाम है कि आज भी हमारे यहाँ कुछ विशेष जनजातियाँ केश धारण करती हैं)