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45. नशे न करने की शिक्षा (चीन, शँघाई नगर)

श्री गुरू नानक देव जी तिब्बत के विभिन्न स्थानों पर निराकार ज्योति की उपासना का प्रचार करते हुए चीन के प्रमुख बन्दरगाह शँघाई की ओर चले गए। वहाँ पर गुरुदेव ने देखा कि जनसाधारण नशे के रूप में अफीम का प्रयोग करते हुऐ भटक रहे थे उनका जीवन, जीवन नहीं रहा बल्कि गफलत की गहरी नींद में सोया मनुष्य, पशु समान हो गया था। अतः गुरुदेव ने नशों के विरुद्ध अभियान चलाना प्रारम्भ कर दिया। जिससे समाज में जागृति आनी शुरू हो गई। आपका परीश्रम रँग लाया जिससे वहाँ पर विवेकी पुरुषों ने आपका साथ देकर एक जन-आँदोलन प्रारम्भ कर किया, इस कार्य में आपको बहुत बड़ी सफलता मिली विशेषकर स्त्री वर्ग आपका ऋणी बन गया क्योंकि उस आँदोलन से उनको बहुत बड़ी राहत मिली। गुरुदेव ने वहाँ पर चिर-स्थाई कार्यक्रम चलाने के लिए निराकार की उपासना के लिए धर्मशाला बनवाई, जिसमें नित्यप्रति सतसँग होने लगा। गुरुदेव ने वहाँ के समाज के समक्ष एक लक्ष्य रखा कि प्रत्येक व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना चाहिए अर्थात किसी दूसरे का मोहताज या गुलाम नहीं होना चाहिए। यदि व्यक्ति मोहताज या गुलाम हो तो उसकी अपनी स्वतँत्र विचारधारा नहीं हो सकती भले ही वह गुलामी राजनैतिक, धार्मिक समाजिक, आर्थिक अथवा स्वयँ की खरीदी हुई, किसी नशों की हो। जब तक व्यक्ति हर दृष्टि से स्वावलम्बी नहीं होगा तब तक समाज मे उसका कोई स्थान नहीं होता। इसलिए वही व्यक्ति जागरूक है जो सदैव आत्मनिर्भर होने की चेष्टा मे लीन रहता है। एक जागरूक समाज के निर्माण के लिए सतसँग की अति आवश्यकता है क्योंकि सतसँग ही वह स्थान है जिसमें हम परस्पर प्रेम भावना से रहना सीख सकते हैं तथा इसी कार्य के लिए दूसरो को प्रेरित कर सकते हैं। इस प्रकार के आदर्श व्यक्तियों का सँगठन ही समाज की सबसे बड़ी शक्ति होती है। जो कि हमारे दुखों का नाश करने में सहायक सिद्ध होता रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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