41. पारो नगर (भूटान देश)
श्री गुरू नानक देव जी आसाम के धूबडी नगर से भूटान देश की प्राचीन राजधानी पारो में
पहुँचे। उन दिनों थिम्पो एक छोटा सा गाँव हुआ करता था। वहाँ पर बुद्ध धर्म का
प्रचार बहुत जोरों पर था। प्रत्येक बड़े कस्बे में मठों की स्थापना हो चुकी थी। अतः
लोग अहिंसा परमो धर्म के उपदेश के अनुसार जीवन जीने का प्रयास करते थे। किन्तु
जनसाधारण माँसाहारी होने के कारण वे इस सिद्धाँत को अपना नहीं पा रहे थे। इसलिए
उन्होंने एक नई युक्ति बनाई जिससे जीवों का वध न करना पड़े तथा वे लोग पाप के
भागीदार न बनें और माँस प्राप्ति भी सहज में हो जाए। इस कार्य के लिए वे लोग मवेशियों
को पर्वतों की चोटियों पर ले जा कर भयँकर आवाजों से भयभीत करके भगाते थे। जिससे
मवेशी सन्तुल खोकर चट्टानों से फिसलकर खाईयों में गिरकर मर जाते थे। तब मरे हुए
पशुओं को काट-काटकर घर में लाकर उनका माँस सुखाकर धीरे-धीरे प्रयोग में लाते रहते
थे। गुरुदेव ने इस कार्य पर आपत्ति की और भूटानी जनता से कहा, तुम लोग अहिंसक होने
का ढोंग रचते हो। जबकि तुम क्रूर हत्याएँ करते हो। तुम्हारे पाखण्ड से जीव
तड़प-तड़पकर मरते हैं और उनको कई गुना अधिक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। इस प्रकार तुम
पापों के भागीदार हो। तुम्हारा अहिंसा परमों धर्म का सिद्धाँत अपने आप में झूठा
सिद्ध हो जाता है। वह सर्व शक्तिमान परमात्मा कहीं दूर नहीं वह तो सर्व-व्यापक है
उसके घर न्याय अवश्य होगा क्योंकि वह हमारे सब कार्य देख रहा है। यदि आप लोग यह
सोचते हो कि केवल बड़े जीव का वध करना ही हत्या है। तो यह भी तुम्हारी भूल ही है। वह
प्रभु तो सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राणी में भी एक समान रूप में विद्यमान है। यहाँ तक
कि अनाज के दानों में भी जीवन है। जहाँ तक कहा जाए कि पानी जिसके बिना हम कदाचित
जीवित नहीं रह सकते। उसमें भी असँख्य सूक्ष्म जीवाणू हैं, जैस गुरबाणी अनुसार:
जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ ।।
पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ।। राग आसा, अंग 472
तात्पर्य यह है कि अहिंसक होने का ढोंग रचना व्यर्थ है।
वास्तविकता यह है कि हमें प्रभु की लीला को समझकर प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन
व्यतीत करना चाहिए।