40. पुजारी शँकरदेव (धूबड़ी, आसाम)
श्री गुरू नानक देव जी चाटोगाँव से नागालैंड, कामरूप, गोलाघाट गोहाटी इत्यादि स्थानों
से होते हुए धूवड़ी पहुँचे। वहाँ पर वैष्णव सम्प्रदाय का एक पूजनीय स्थल था जिसमें
श्री शँकरदेव नाम के एक पण्डित मुख्य पुजारी थे जो कि असीम श्रद्धा भक्ति से उपासना
करते थे। गुरुदेव ने उसकी श्रद्धा पर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की, किन्तु उसे समझाया,
जहां आप में अपार श्रद्धा है अगर उसके साथ ज्ञान भी सम्मिलित कर लें तो आप पूर्ण हो
जाएँगे। क्योंकि बिना ज्ञान के अंधी श्रद्धा कूएँ मे धकेल देती है। यह सुनकर पण्डित
शँकरदेव जी गुरुदेव से प्रश्न पूछने लगे: कि हे मान्यवर जी! कृपया आप मुझे मेरी
त्रुटियाँ बताएँ तथा मेरा मार्ग दर्शन करें। इस पर गुरुदेव ने कहा: जो आपके पास
ज्ञान के स्त्रोत, पवित्र आध्यात्मिक ग्रँथ हैं आपको उन की पूजा करनी चाहिए। अर्थात
उन्हीं के ज्ञान का प्रचार-प्रसार ही वास्तविक पूजा है। तथा ज्ञान के स्त्रोत,
ग्रँथो का सम्मान ही वास्तविक उपासना है। यदि हम ज्ञान के स्थान पर निर्जीव मूर्तियों
पर व्यर्थ में समय नष्ट करेंगे तो यह हमारा कर्मकाण्ड निष्फल चला जाएगा। अतः हमें
सावधनी से सोच विचार कर आध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहिए। पण्डित शँकरदेव जी गुरुदेव
की इस रहस्यमय सीख से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उस दिन से मूर्ति पूजा त्याग दी
और बिना मूर्ति के ज्योति स्वरूप निराकार अकाल पुरुष की उपासना का प्रचार करने लगे,
तथा उन्होंने ज्ञान प्राप्ति को ही अपना लक्ष्य बना लिया और उसी ज्ञान पर आधारित
आचरण बना लिया।