36. झँडा वाढ़ी (बढ़ई) चाटो ग्राम, बँगला
देश
ढाका से प्रस्थान करके श्री गुरू नानक देव जी ‘चाटो ग्राम’ पहुँचे। वहाँ पर झँडा
नामक एक बढ़ई बहुत प्रसिद्ध था। वह प्रतिदिन प्रातःकाल हरि यश करता था। उसने एक
मण्डली बना रखी थी जिसमें नगर के कुलीन वर्ग के लोग भी हरि यश में सम्मिलित होने आते
थे। उन लोगों में एक व्यक्ति स्थानीय राजा का भाँजा इन्द्रसैन भी था। वह लोग बिना
किसी आडम्वर के, हृदय से एक परमात्मा की आराधना करते थे, और बिना किसी भेद भाव के
सभी को आराधना में निराकार उपासना के लिए प्रेरित किया करते। बाकी समस्त दिन भाई
झँडा, बढई का कार्य करके परीश्रम से अपनी उपजीविका कमाता था तथा जरूरत-मँदो की
सहायता करना अपना परम कर्तव्य समझता था। इन लोगों को जब मालूम हुआ कि नगर में कोई
महापुरुष आये हुए है जो कि प्रभु स्तुति कीर्तन द्वारा करते हैं तथा उनके प्रवचनों
की विचारधारा उनसे मिलती है तो वे गुरुदेव से मिलने चले आए। गुरुदेव ने उन का भव्य
स्वागत किया और कहा, झँडा भाई वास्तव में हम आपसे मिलने ही आए हैं, क्योंकि हमारा
दृष्टिकोण एक ही है जिस कार्य को हम कर रहे हैं आप भी प्रभु हुक्म से उसी के
प्रचार-प्रसार की चेष्टा कर रहे हैं अतः हमारा उद्देश्य एक है। झँडा जी, गुरुदेव से
स्नेह पाकर गद्-गद् हो गए उनके नेत्रों से प्रेम मय आँसू की धारा प्रवाहित हो चली।
झँडा जी ने गुरुदेव को अपने यहाँ रहने का निमँत्रण दिया जो कि गुरुदेव ने सहर्ष
स्वीकार कर लिया। गुरुदेव के पधारने से वहाँ नित्य प्रति सतसँग होने लगा। दूर-दूर
से संगत कीर्तन तथा प्रवचन सुनने के लिए आने लगी यह सूचना जब स्थानीय राजा सुधरसैन
को मिली तो वह विचारने लगा कि ऐसे लोकप्रिय पुरुष को पहले मुझसे मिलना चाहिए था
क्योंकि मैं यहाँ का राजा हूँ। उसने अभिमान में आकर गुरुदेव को अपने सिपाहिओं द्वारा
बुलवा भेजा। जब राजा के भाँजे इन्द्रसैन, को सिपाहियों का झन्डा बढई के यहाँ जाने
का पता लगा तो वह तुरन्त हस्तक्षेप करने राजा के पास पहुँचा तथा उसे समझाते हुए कहा
कि महापुरुषों के दर्शनों के लिए स्वयँ को नम्रता धारण करके जाना चाहिए और वहाँ
निवेदन करके उनकी कृपा के पात्र बनना चाहिए, जिससे तुम्हारा भी कल्याण होगा अभिमान
दिखाने से कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। जल्दी ही राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ,
वह स्वयँ कुछ उपहार लेकर गुरुदेव के दर्शनों के लिए पहुँचा तब वहाँ सतसँग में
कीर्तन हो रहा था। तथा गुरुदेव निम्नलिखित वाणी का गायन कर रहे थे:
कोई भीखकु भीखिआ खाइ ।। कोई राजा रहिआ सभाइ ।।
किसही मानु किसै अपमानु ।। ढाहि उसारे धरे धिआनु ।।
तुझ ते वडा नाहीं कोई ।। राग आसा, अंग 354
अर्थ: परमात्मा को भुलाकर ही कोई भिखारी माँग माँग कर खाता है
और परमात्मा को भुलाकर ही कोई इन्सान राजा बनकर राज में मस्त हो रहा है। किसी को
आदर मिल रहा है, इस कारण वो इस आदर के कारण अँहकारी हो गया है और किसी की निरादरी
हो रही है, इस कारण वो अपनी मनुष्यता का कौड़ी मूल्य भी नहीं समझता। कोई इन्सान अपने
मन में कई योजनाएँ बनाता है, फिर उन्हें मन से मिटा देता है, लेकिन हे परमात्मा आपसे
बड़ा कोई भी नहीं है। यह रचना सुनकर सुधरसैन का हृदय मोम की तरह पिघल गया तथा सभी
प्रकार का राज अभिमान जाता रहा। वह गुरुदेव की शरण में आ पड़ा। गुरुदेव ने उसकी
नम्रता देखकर उसे कण्ठ से लगाया और वरदान दिया। परफुल्लित हो ! कुछ दिन बाद यह
वरदान सत्य सिद्ध हुआ। राजा सुधर सैन की सभी निकटवर्ती 18 रियासतें जो कि अपने आपको
स्वतँत्र मानती थी, धीरे-धीरे सुधरसैन के अधिकार को स्वीकार करने लगी। इन्द्रसेन ने
भक्ति दान की याचना की, सतगुरु ने कहा, जिसने मन पर विजय प्राप्त कर ली उसने सब कुछ
प्राप्त कर लिया। जिसने प्रेम साधना के आधीन नाम स्मरण किया उसने अकाल पुरुष का
सामीप्य अनुभव किया। यदि तुम न्याय और धर्म का पल्लू नहीं छोड़ोगे, तो तुम्हारा
कल्याण होगा। गुरुदेव ने झँडा जी द्वारा अतिथी सत्कार देखकर अति प्रसन्नता व्यक्त
की तथा कहा, तुम धन्य हो जो अपने कल्याण के साथ, जन साधरण के कल्याण के लिए सत्य की
खोज में प्रतिदिन हरि यश करते हो, तुम्हारे हमारे विचारों में लगभग समानता है। तुम
परमपद को प्राप्त करोगे, क्योंकि तुम्हारे प्रत्येक कार्य निष्काम तथा निस्स्वार्थ
सेवा-भाव से हैं। तभी गुरुदेव ने उसे दिव्य दृष्टि प्रदान की, उसका अंतःकरण
प्रकाशमान हो उठा। सभी ने गुरुदेव से गुरू दीक्षा के लिए कामना की। अतः गुरुदेव ने
झँडावाढ़ी, बढ़ई, इन्द्रसेन, राजा सुधरसेन, राजा मधरसैन इत्यादि लोगों को भी जनसाधारण
के साथ दीक्षित किया और अपना शिष्य बनाकर कृतार्थ किया और बचन किया कि वहाँ सतसँग
सदैव होते रहना चाहिए। इसलिए उन्होंने वहाँ पर एक विशाल धर्मशाला बनवाई, जिसमें
गुरुमति का प्रथम प्रचारक झँडा जी को नियुक्त किया। राजा सुधरसैन के प्रेम के कारण
आपने लगभग तीन माह गुरुमति दृढ़ करवाने का कार्य स्वयँ किया। ततपश्चात् जाते समय झँडा
जी को यह कार्यभार सम्भालने को कहा अर्थात आप जी ने झँडा बढ़ई को वहाँ के लिए मँजी
प्रदान करके केन्द्र का उतराधिकारी बनाया।