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32. शाह सुजाह (हावड़ा, बँगाल)

श्री गुरू नानक देव जी यात्रा करते एक स्थान पर पहुँचे जिसका नाम मुर्शिदाबाद था। वहाँ पर गुरुदेव ने पानी के एक स्त्रोत के निकट रात भर ठहरने का निश्चय किया। वहाँ पर शाह सुजाह कवि जी आ पहुँचे। जल ग्रहण करने के पश्चात् जब वह घर लौटने लगे तो उनकी दृष्टि गुरू नानक देव जी पर पड़ी जो उस समय भजन बंदगी में व्यस्त थे। सुजाह के हृदय में विचार आया कि यदि इन महापुरुषों को मैं अपने घर पर विश्राम करने के लिए कहूँ तो इन्हें सुविधा होगी। अतः उन्होंने गुरुदेव से आग्रह कर अपने साथ घर पर रात भर ठहरने के लिए स्वीकृति प्राप्त कर ली। गुरुदेव उस की निष्काम सेवा से अति प्रसन्न हुए। भोजन उपरान्त मरदाना जी ने कीर्तन किया। ततपश्चात् सुजाह ने रात भर गुरुदेव से आध्यात्मिक विचार गोष्ठी की। वास्तव में सुजाह जानना चाहते थे कि गृहस्थ जीवन में रहते मुक्ति कैसे प्राप्ति हो ? जिज्ञासा यह थी कि गृहस्थ में माया मोह इत्यादि के प्रभाव से ऊपर कैसे उठा जाए। गुरुदेव ने उन की शँकाओं का समाधान करते हुए कहा मनुष्य को अपनी मृत्यु सदैव याद रखनी चाहिए तथा यह मानकर कार्य करते रहना चाहिए कि वह पृथ्वी पर एक अतिथि है न जाने कब बुलावा आ जाए। इस प्रकार माया, मोह के प्रभाव से बचा जा सकता है। इस के अतिरिक्त एक निराकार प्रभु को सर्व व्यापक जानकर, उसके भय में जीवन व्यतीत करना चाहिए। गुरुदेव जब प्रातःकाल विदाई लेने लगे तो सुजाह की प्रेमावस्था देखकर आपने उन्हें ब्रह्मज्ञान की ज्योति प्रदान कर दी और आगे के लिए चल पड़े। रास्ते में भाई मरदाना जी ने गुरुदेव से प्रश्न पूछा: हे ! गुरू जी आपके अनेक सिक्ख तथा शिष्य हुए हैं जिन्होंने आपकी बहुत अधिक तन-मन धन से सेवा की है किन्तु आप उन पर इतने नहीं प्रसन्न्न नहीं हुए, जितने इस सुजाह से संतुष्ट हुए हैं ? इन को तो आपने ब्रह्मज्ञान की आत्मिक अवस्था प्रदान कर दी है जो कि अमूल्य निधि है। इसके उत्तर में गुरुदेव कहने लगे: भाई मान लो हमारे पास तीन दीपक हैं, एक में तेल, बत्ती दोनो हैं, दूसरे में केवल बत्ती है, तेल नहीं, और तीसरे में बत्ती तेल दोनो नहीं, अब ऐसे में आप बताएँ कि कौन सा दीपक जलाने पर प्रकाशमान होगा ? भाई मरदाना जी कहने लगे: कि प्रश्न सीधा है, पहला दीपक ही प्रकाश मान होगा क्योंकि उसमें दोनो आवश्यक वस्तुएँ हैं। दूसरा दीपक जलने पर एक बार तो अवश्य जलेगा। परन्तु बहुत जल्दी तेल न होने के कारण टिमटिमा कर बुझ जाएगा। तीसरा तो जलेगा ही नहीं, उसने प्रकाश मान क्या होना है। उत्तर पाकर गुरुदेव ने बात को स्पष्ट किया: जिस प्रकार एक दीपक प्रकाश मान हो सकता है, क्योंकि उस में तेल बत्ती दोनों है ठीक इसी प्रकार शाह सुजाह में पहले से ही प्रभु नाम की कमाई रूपी तेल तथा प्रतिभा रूपी बत्ती दोनों विद्यमान हैं। हमने तो उसे केवल ज्ञान रूपी ज्योति प्रदान की है। जिससे वह स्वयँ ही प्रकाशमान हो उठे हैं। अर्थात ज्ञान ज्योति वहीं सफल कार्य कर सकती है जहां जिज्ञासु, नाम की कमाई करने के लिए हृदय से तैयार हो तथा ज्ञान रूपी प्रसाद तभी प्राप्त होगा जब व्यक्ति आत्म समर्पण करके अपना अँह, अभिमान त्यागकर सेवा में जुट जाए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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