30. पाखण्डी साधु (पुरी, उड़ीसा)
श्री गुरू नानक देव जी एक दिन पुरी नगर में समुद्र तट पर विचरण कर रहे थे कि एक साधु
मदारी की तरह मजमा लगाकर ऊँचे स्वर में किसी अज्ञात दृश्यों की झलक प्रस्तुत कर रहा
था। कौतूहलवश गुरुदेव तथा उनके साथी भाई मरदाना भी उस भीड़ में वहीं खड़े हो कर, उस
साधु का भाषण, सुनने लगे, जिसने आखें मूँद रखी थीं। वह दर्शकों को बता रहा था कि
उसने एक विशेष प्रकार की आत्मिक शक्ति प्राप्त की है, जिसके अन्तर्गत उसे
अन्तर्ध्यान होने पर सभी लोगों के यथार्थ दर्शन होते हैं। जिसको वह अपनी दिव्य
दृष्टि से देखकर सुना सकता है। इस प्रकार वह, इन्द्र लोक, शिव लोक, विष्णु पुरी
इत्यादि की काल्पनिक कथाएँ रच-रचकर लोगों को सुनाता रहता था। लोग उसकी कथन शक्ति से
प्रभावित होकर उसके सामने रखे लोटे में श्रद्धानुसार सिक्के डालते रहते थे। वह आँखें
मूँदकर स्वाँग रचते हुए काल्पनिक कहानियाँ कुछ इस प्रकार सुना रहा था: ढोंगी साधु
बोला– मुझे इस समय विष्णु पुरी के दर्शन हो रहे हैं। भगवान विष्णु जी सर्प पर आसन
लगाए हैं इस समय उनको नारद जी मिलने आये हुए हैं वह उनसे विचार-विमर्श कर रहे हैं
कि भगवान जी ने अभी-अभी किसी कारण वश लक्ष्मी माता जी को बुला भेजा है। अतः वह पधार
रहीं हैं इत्यादि-इत्यादि। जन साधरण, काल्पनिक दृश्यों को वास्तविक जानकर बहुत
प्रभावित हो रहे थे कि तभी गुरुदेव ने सभी जन समूह को चुप रहने का संकेत किया तथा
भाई मरदाना जी को, वह लोटा सामने से उठाकर साधु के पीछे रखने को कहा। भाई जी ने
चुपके से ऐसा ही कर दिया। जब कुछ समय पश्चात् साधु ने आंखे खोली तो वहाँ पर अपना
लोटा न देखकर बहुत घबरा गया तथा पूछने लगा कि मेरा लोटा किस ने उठाया है? कौन है जो
साधुओं के साथ मजाक कर रहा है ? तब गुरुदेव ने कहा, आप नाराज न हो, आपको तो दिव्य
दृष्टि मिली हुई है। अतः आप स्वयँ अन्तर ध्यान होकर अपना लोटा ढूँढ़ लें क्योंकि वह
तो इसी मात लोक में ही है। वह किसी दूसरे लोक में तो पहुँच नहीं सकता। यह तर्क
सुनकर ढोंगी साधु बहुत छटपटाया क्योंकि वह इस समय पूर्णतः चुँगल में फँस चुका था।
अब उसे कुछ कहते नहीं बन रहा था अतः वह सभी जन-समुह को कोसने लगा। यह देखकर सभी लोग
हंसने लगे कि अब साधु बाबा की पोल खुल गई थी। अतः उस के ढोंग का अब परदाफाश हो चुका
था। उपयुक्त समय देखकर गुरुदेव ने कहा, साधु बाबा क्यों ढोंग रचते हो ? तुम्हें तो
अपने पीछे पड़ा हुआ लोटा भी दिखाई नहीं देता परन्तु बातें करते हो इन्द्र लोक, विष्णु
लोक की जिनका कि अस्तित्व भी नहीं। केवल तुम्हारी कोरी कल्पना मात्र है। सत्य का
एहसास करके ढोंगी साधु बाबा बहुत लज्जित हुए तथा उसने तुरन्त स्वीकार कर लिया कि यह
ढोंग तो मेरी जीविका का साधन मात्र है। वास्तव में मुझे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता,
मैं तो काल्पनिक कहानियाँ सुनाने का अभ्यास किये रहता हूँ। तब गुरुदेव ने उसे उपदेश
दिया कि केवल अपनी जीविका के लिए आध्यात्मिक जीवन को मिथ्या कहानियों का प्रचार करके
नष्ट न करें। यह तो दुगुना पाप है क्योंकि जनसाधारण इनको सत्य मानकर भटक जाता है।
अखी त मीटहि नाक पकड़हि ठगण कउ संसारु ।। रहाउ ।।
आंट सेती नाकु पकड़हि सूझते तिनि लोअ ।।
मगर पाछै कुछ न सूझै इहु पदमु अलोअ ।। राग धनासरी, अंग 663