3. पशुओं का वध (लाहौर)
अपने प्रथम प्रचार के दौर में जब आप लाहौर नगर पहुँचे तो उन दिनों श्राद्धों के दिन
थे। लाहौर पहुँचकर आपने जवाहरमल के चौहटे में एक कूएँ के पास पीपल के नीचे अपना डेरा
डाल दिया। जब प्रातः काल (अमृत बेला) का समय हुआ तो आप शौच-स्नान करके प्रभु चरणों
में लीन हो गये। परन्तु कुछ लोग वहाँ पर पशुओं का वध करने लगे। पशुओं की चीख–चिल्लाहट
सुनकर गुरुदेव की समाधि में भारी बाधा उत्पन्न हो गई। अमृत बेला, (प्रातःकाल)
निरर्थक होता जानकर आप जी बहुत क्षुब्ध हुए, परन्तु उस प्रभु की लीला देखकर कहने लगे:
असंख गलवढ हतिआ कमाहि ।।
असंख पापी पापु करि जाहि ।। जपुजी साहब, अंग 3
अर्थ– कई लोग हत्यारे हैं, हत्या कमाते हैं कई लोग पापी है, पाप
ही किए जा रहे हैं, इन सबका हिसाब भी होगा। जब आप ने देखा कि मुल्लां कलमा पढ़कर यह
दावा कर रहे हैं कि उन्हें कुर्बानी का पुण्य प्राप्त हुआ है तथा मारे गये पशुओं को
जन्नत नसीब हुई है तो गुरुदेव ने इसका कड़ा विरोध किया। अपने स्वार्थ के लिए जीवों
की हत्या करना पाप है तथा यह सब उस समय दुगुना हो जाता है जब हत्याओं को उचित
दर्शाने के लिए पुण्य मिलने का महत्व बताते हैं। आप ने कहा, यह कैसी मान्यता है कि
प्रभु के बनाये जीवों की हत्या को पुण्य मानकर अपने आप को धोखा दिया जाता है।
परमात्मा सब जीवों के पिता है। कोई पिता अपनी सन्तान की हत्या से कैसे प्रसन्न हो
सकता है ?