22. सैयद शेख वजीद सूफी, हाज़ीपुर,
बिहार
गुरू नानक देव जी पटना नगर की ओर बढ़ रहे थे, रास्ते में भाई मरदाना जी ने एक पालकी
देखी जिसे छः (6) कहार उठाए लिए जा रहे थे। गरमी में ये कहार पसीने से तर थे।
उन्होंने एक वृक्ष की छाया में पालकी को कँधें से उतारकर रखा तब उसमें से एक अमीराना
ठाटबाट वाला सूफी फ़कीर निकला। वह बड़ा हृष्ट-पुष्ट था और उसने रेशमी वस्त्र धारण किये
हुए थे। कहारों ने उसके लिए गालीचे बिछा दिए तथा तकिए लगाकर रख दिए। जब वह लेटकर उन
गालीचों पर सोने लगा तो वे कहार उसके पाँव दबाने और पँखा करने लगे। वह सैयद शेख़
वजीद सूफी था। यह देखकर भाई मरदाना से न रहा गया उसने गुरु जी से पूछा: गुरुदेव !
खुदा एक है या दो ? गुरुदेव ने भाई जी की दुविधा को समझते हुए उत्तर दिया: खुदा तो
एक ही है। उत्तर सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे: गुरु जी ! मुझे यह तो समझाइए कि ये
कहार जो गरमी में पसीने से तर-बतर होकर पालकी को उठाए हुए थे और अब उस स्वामी के
हाथ-पाँव दबा रहे हैं उनको किसने उत्पन्न किया है और यह मोटा-ताजा सूफी जो पालकी
में चढ़कर आया है तथा फिर पांव दबवाने लग गया है, उसे किसने जन्म दिया है ? गुरू जी
ने उत्तर दिया: मरदाना जी ! सँसार में सब नंगे आते हैं और नंगे ही जाते हैं। प्रभु
मनुष्यों के कर्म देखता है। उनकी अमीरी गरीबी नहीं, जो गरीबों का रक्त पीते हैं,
चाहे वे दरवेशों के चोगे पहनकर घूमते रहें उनका अन्त बुरा ही होता है। जो परीश्रम
करते हैं किन्तु धर्मात्मा भी हैं प्रभु उन पर कई प्रकार से कृपा करता है। गुरुदेव
जी, शेख वजीद के पास गए और उसे समझाया: सूफी दरवेशों को ऐश्वर्य का जीवन शोभा नहीं
देता। मुहम्मद साहिब ने भी कहा है, गरीबी पर मुझे गौरव है। इस प्रकार का शाही जीवन
और गरीबों को दुख देकर स्वयँ सुख का भोग करना सूफी मत वालों को शोभा नहीं देता। सूफी
दरवेश का जीवन तो शेख फरीद की तरह जपी-तपी और सरलता का जीवन होना चाहिए। शेख वजीद
पर गुरू नानक देव जी के उपदेश का ऐसा असर हुआ कि वह गुरुदेव के चरणो में गिरा और
उसने प्रतिज्ञा की कि वह धीरे धीरे यह सुखप्रद जीवन त्याग देगा।