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20. प्रकृति के अमूल उपहार’ (गँगा नदी का तट, पटना, बिहार)

जब गुरुदेव पटना नगर के निकट गँगा के तट पर पहुँचे तो वहाँ कुछ जिज्ञासु, गुरुदेव के पास उनके प्रवचन सुनने हेतु उपस्थित हुए। पहले भाई मरदाना जी ने शब्द गायन किया तत्पश्चात् गुरुदेव ने सँगत को सम्बोधन करते हुए कहा कि यह समय अमूल्य है इसको व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। अपने श्वासों की पूंजी को सफल बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए तथा प्रभु के लिए कृतज्ञ होना चाहिए जिसने हमें इतनी सुन्दर काया प्रदान की है। हमें उस की प्रत्येक वस्तु उपहार स्वरूप मिली हुई है। अतः हम उसकी दी गई किसी भी वस्तु की कीमत नहीं आँक सकते। यह पवन, जल इत्यादि ही ले लो. हम देखते है कि यह सब उसके अमूल्य विशाल भण्डार हमें प्राप्त है, जिसके बदले में हमें कुछ नहीं देना पडता। वे लोग जो किसी कारण वश इस काया में कमी अनुभव करते हैं अथवा विकलांग है, यदि वे किसी भी कीमत पर इस काया में सुधार की इच्छा रखते है तो क्या सम्भव है ? कदाचित नहीं। इसलिए उन लोगों को कटु अनुभव हो जाता है कि उसकी प्रकृति के उपहारों का कोई विकल्प नहीं है, अतः हमें प्रत्येक क्षण सतर्क रहना चाहिए कि हम कोई भी अनुचित कार्य न करें।

यह उपदेश सुनकर एक श्रद्धालु ने शँका व्यक्त करते हुए कहाः गुरू जी ! आप हमें पानी का मूल्य बताएं ? गुरुदेव ने उससे पूछाः हे भक्त जन ! आप क्या कार्य करते हैं ? उसने उत्तर दियाः जी, मैं एक जागीरदार हूँ। गुरुदेव ने कहाः एक किसान तो पानी के महत्व को जानता है किन्तु हम आपकी शँका के समाधन के लिए जीवन के यथार्थ को समझाने की चेष्टा करते हैं। मान लो रास्ते के सफर में कहीं ऐसी परिस्थिति आ जाए कि कहीं पानी ढूढ़ने से भी न मिले उस समय आप प्यास से अति वियाकुल हो तो ऐसे में एक प्याला पानी तुम्हें कोई कहीं से ला दे तथा तुम्हारे प्राण बचा ले, तो तुम उस व्यक्ति को क्या दोगे ? ज़मीदार ने कहाः कि यदि प्राण रक्षा तक नौबत आ जाए तो मैं उसे आधी सम्पति दे दुँगा। यह उत्तर सुन कर गुरुदेव कहने लगेः कि मान लो वह पानी का प्याला शरीर के भीतर किसी कारण रूक जाए तथा उसकी निकासी न हो पाए तथा दर्द के कारण तुम्हारा बुरा हाल हो तो ऐसे में कोई व्यक्ति उपचार से तुम्हें सामान्य स्थिति में ला दे तो आप उसे क्या देगें। इस पर वह जमीदार कहने लगाः मैं उसे अपनी बाकी की आधी सम्पति भी दे दूँगा। तब गुरुदेव ने निर्णय दियाः इसका अर्थ यह हुआ कि एक प्याला पानी की कीमत तुम्हारी पूरी सम्पति हुई न।
यह सुनकर सभी गुरुदेव की विचार धारा से प्रभावित हो गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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