19. 'अक्षयवट वृक्ष' (प्रयाग इलाहाबाद)
उन दिनों प्रयाग में एक विशाल बरगद का वृक्ष था, जिसका नाम अक्षय वट रखा हुआ था।
कुछ पण्डों ने यह कहानियाँ फैला रखी थीं कि जो व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति पण्डो
को दान-दक्षिणा में देकर इस वृक्ष की चोटी से कूदकर आत्महत्या कर लेगा वह सीधा
बैकुण्ठधाम को जाएगा। यह मिथ्या प्रचार इतना जोरों पर था कि कई धनी बहकावे में आकर
पण्डों के चँगुल में फँसकर अकसर आत्महत्या करते देखे गये थे। अतः गुरू बाबा नानक
देव जी जब वहाँ पहुँचे तो एक कुलीन परिवार से सम्बन्धित व्यक्ति कुछ पण्डों के जाल
में फँसकर बैकुण्ठ धाम के झाँसे में आकर अपना समस्त धन इन लोगों पर न्यौछावर करके
आत्महत्या के लिए वृक्ष पर चढ कर कूदने को तैयार हो बैठा था। किन्तु ठीक समय पर
गुरुदेव वहाँ पहुँच गये और उन्होंने उस व्यक्ति को मूर्खता करने से तुरन्त सावधान
किया तथा पण्डों को फिटकारा कि तुम भोले भाले लोगों से धन ऐंठते हो तथा उनको गुमराह
करके आत्महत्या करने पर विवश करते हो। पहले तो पण्डे लोग अपनी चाल विफल होने पर
लाल-पीले हो जाने की स्थिति में थे किन्तु गुरुदेव के तेज एवँ वैभव को देखकर ठिठक
गये। गुरुदेव के हस्तक्षेप से यह दुर्घटना होते-होते टल गई किन्तु वहाँ पर सभी
दर्शकों के मन में बसे अँधविश्वास पर से ज्ञान द्वारा जागृति लाने के लिए गुरुदेव
ने उपदेश देना प्रारम्भ किया कि यह हमारा शरीर अमूल्य निधि है। यह हमें पुनः
प्राप्त नहीं हो सकता इसको बिना कारण नष्ट नहीं करना चाहिए। वास्तव में, यह विश्व,
कर्म भूमि है यहाँ मनुष्य ने प्रभु नाम की कमाई करनी है, जो कि एक मात्र साधन है
जिससे हम सभी आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। अतः हमें किसी भी
प्रकार की दुविधा में नहीं पड़ना चाहिए केवल सत्य के मार्ग पर चलने का सदैव प्रयत्न
करते रहना चाहिए। उस समय गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को रबाब बजाने को कहा तथा स्वयँ
वाणी उच्चारण करने लगे–
दुबिधा न पड़उ हरि बिनु होरु न पूजउ मड़ै मसाणि न जाई ॥
त्रिसना राचि न पर घरि जावा त्रिसना नामि बुझाई ॥ राग सोरठि, 634
अर्थः परमात्मा के बिना किसी और आसरे में कभी भी नहीं जीना
चाहिए, परमात्मा का नाम जपने के अलावा और किसी की पूजा नहीं करनी चाहिए और किसी भी
स्थानों में, मसानों में नहीं जाना चाहिए। माया की त्रिसना परमात्मा के नाम द्वारा
मिट जाती है।