11. चण्डी देवी का खण्डन (अलमोड़ा,
उत्तर प्रदेश)
गुरू नानक देव जी लिपूलेप दर्रा से वापस काली नदी के किनारे-किनारे दारचू ला पहुँचे
जो कि नेपाल भारत सीमा पर स्थित है। वहाँ से पिथौरा गढ़ से होते हुए अलमोड़ा नगर
पहुँचे। उन दिनों अल्मोड़ा में चन्द जाति के राजा चन्डी देवी की पूजा के लिए मनुष्य
की बलि भेंट में चढ़ाते थे। गुरुदेव ने इस कुकर्म का बड़ा विरोध किया तथा कहा,
निर्जीव पत्थर की मूर्ति के लिए जो कि तुमने स्वयँ ही निर्मित की है, एक जीवित
सुन्दर स्वस्थ मनुष्य का वध करना, जिसे प्रभु ने स्वयँ हम जैसा ही निर्मित किया है,
कहाँ तक उचित है ? इस प्रकार प्रभु कदाचित प्रसन्न नहीं हो सकता। अतः हमें सदैव
प्राणी मात्र की सेवा करनी चाहिए क्योंकि हम उस प्रभु की बनाई जीवित मूर्तियाँ हैं।
हम सब में प्रभु का अंश है। वह तो सर्वव्यापक हमारा पिता है हमें केवल उस अकाल
पुरुष की ही पूजा करनी चाहिए। यह सुनकर राजा बहुत शर्मिन्दा हुआ।