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6. मौलवी कुतुबदीन को शिक्षा

शिक्षा समाप्त करके नानक जी घर पर या साधु-संतों के पास घूमने लगे। दानी स्वभाव के कारण घर से लाई वस्तुएँ जरूरत मँद लोगों को दे देते जिस से पिता कालू जी, नानक जी पर कभी कभी नाराज होते तथा कहते, कैसा बेटा है सभी के बेटे कुछ काम-काज करते हैं और एक तूँ है कि घर की वस्तुओं को लोगों को लुटा देता है। यह सब कब तक चलेगा। परन्तु उदार चित नानक जी पर उनकी बातों का कोई प्रभाव न होता। वह अक्सर अपने साथी बालकों के साथ दूर-दूर महात्माओं की तलाश में घूमने चले जाते। वहाँ उनसे आध्यात्मिक विचार विमर्श करते तथा जो कुछ भी पास में होता उनको दे आते। यह देखकर पिता कालू जी नानक से कुछ नाराज से रहने लगे। परन्तु नानक उनका इकलौता बेटा था तथा कुछ कहते नहीं बनता था। वैसे भी अभी नानक जी की आयु केवल 12 वर्ष की थी, इसलिए उन्हें किसी काम-धन्धे पर भी तो नहीं लगाया जा सकता था। घर में किसी प्रकार से धन-सम्पदा का अभाव तो था नहीं, हर प्रकार से परिवार समृद्ध था। किन्तु, एक दिन नानक जी ने घर से लाए चाँदी के लोटे को एक सन्यासी को दे दिया। इस बात को लेकर पिता कालू जी बहुत परेशान हुए। यह बात नवाब राय बुलार जी को जब ज्ञात हुई तो कालू जी को सलाह दी कि बच्चे को बिना कारण इधर-उधर घूमने से तो अच्छा है उसे मौलवी कुतुबुद्दीन के पास फारसी पढ़ने के लिए भेज दो। वहाँ पर वह अपना ध्यान पढ़ाई में लगायेगा जिससे इल्म तो हासिल होगा ही तेरी भी समस्या हल हो जाएगी। पिता कालू जी को यह सलाह बहुत रुचिकर लगी। उन्होंने दूसरे दिन ही नानक जी को मुल्ला के मदरसे में भेज दिया। फिर क्या था ? नानक जी वहाँ फारसी बहुत चाव से सीखने लगे। मौलवी जी उन के रोशन दिमाग को देखकर दँग रह गए। उन्होंने जैसा सुना था वैसा ही पाया। अतः नानक जी की तरफ विशेष ध्यान देने लगे। जल्दी ही नानक जी एक के बाद एक किताबें पढ़ने लगे। इस प्रकार नानक जी एक वर्ष के भीतर ही वह सब कुछ हासिल कर गये जो दूसरे शार्गिद वर्षो में नहीं प्राप्त कर पाये। एक दिन मौलवी जी ने नानक जी परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने नानक जी को कोई शेर लिखने को कहा, फिर क्या था ? नानक जी ने एक शेर लिखा जो कि इस प्रकार है?

यक अर्ज गुफतम पेसि तो दर गोस कुन करतार।।
हका कबीर करीम तू बेऐब परवदगार ।। रागु तिलंग, पृष्ठ 721

अर्थात्? हे मेरे साहिब, हे मेरे भगवान तेरे आगे मेरी एक प्रार्थना है, तूँ ही सबका कर्त्ता है, मनुष्य दुर्गुण की खान है परन्तु तू बेदाग है, बेअन्त है, सब का रिज़क दाता है तथा तेरे बिना मुझे कोई दूसरा दिखाई नहीं देता। यह शेर सुनकर मौलवी जी दँग रह गए। उन्होंने सोचा शायद नानक ने कहीं से पढ़कर याद कर रखा होगा। अतः उन्होंने फिर से कहा नानक कोई और शेर सुनाओ, तब नानक जी ने शेर सुनाया जिसका अर्थ था, यह संसार नाश वान है, इसलिए मैं दिल का हाल किस से कहूँ। मौत के फरिश्ते ने सबको अपनी जकड़ में लिया हुआ है। न जाने वह कब किस को उठा ले जाए। यह शेर सुनकर मौलवी जी नानक जी की शख्सीयत के कायल हो गए तथा वह नानक जी का अदब करने लगे। उसने पिता कालू जी को बुला कर कहाः मैं नानक को अपना अव्वल शार्गिद मानता था, लेकिन यह तो मेरा भी उस्ताद है। इसलिए मैं इसे पढ़ाने के काबिल नहीं हूँ। मेहता कालू जी वास्तविक रहस्य को न समझ सके। अतः निराश होकर नानक जी को उन्होंने घर पर ही रहने को कहा। कुछ दिन इसी प्रकार व्यतीत हो गये। अब नानक जी घर पर ही रहते। अपनी आयु के बालकों के साथ खेलने भी नहीं जाते थे। बस हर समय शान्त तथा मौन रहते। धीरे धीरे वह उदास रहने लगे। तब नानकी जी, नानक को बहुत प्यार से पूछतीः भईया तुम्हें क्या दुःख है ? कुछ हमें भी बताओ। नानक जी ने कहाः दुःख मुझे नहीं, दुखी तो संसार है। मैं तो बस उसके लिए चिन्तित हूँ कि इसे कैसे दूर किया जाए।  इस रहस्य का नानकी जी को कुछ-कुछ आभास होता, कि उसका भाई नानक परमात्मा का भेजा हुआ कोई दिव्य पुरुष है। परन्तु वह यह सब पिता जी पर प्रकट न कर पाती। बस पिता जी को समझाने के लिए कह देतीः पिता जी नानक का मन बहलाने के लिए इसे किसी काम में लगा दे तो सब ठीक हो जाएगा।" मेहता कालू जी सोचते, बात ठीक है परन्तु मैं लड़के को इस 13 वर्ष की आयु में किस काम में लगाऊँ। अगले दिन पिता मेहता कालू जी ने गुरू जी को बुलाकर कहाः तुम आज से अपने मवेशियों को ही चरागाह में ले जाया करोगे। नानक जीः पिता जी आप जो आज्ञा देगें मैं वही करूंगा। अतः नानक जी ने गौशाला में से मवेशियों को साथ में लिया और चरागाह में चले गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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