2. बाल्य-काल
आनंद मंगल के दिन शीघ्र ही बीत गये तथा बालक नानक देव पाँच वर्ष के हो गये। तब वह
अपनी आयु के बालकों के साथ खेलने लगे। परन्तु नानक जी के खेल अलग प्रकार के होते।
वे आसन जमा कर बच्चों की मण्डलियाँ बनाकर ज्ञान-गोष्ठियाँ करते जो सब बच्चों को
बहुत रुचिकर लगती। जिससे समस्त बच्चे नानक जी के नेतृत्व में रहने लगे। नानक जी
खेल-खेल में मार्ग दर्शन करने लगे तथा समानता, प्रेम, सत्य, वीरता का पाठ पढ़ाते,
जिससे बच्चों में कभी झगड़ा नहीं होता था। अतः नानक जी सभी को भाते थे। बिना नानक जी
के सभी खेल अधूरे होते तथा बच्चे सदैव ही नानक जी की राह देखते। नानक जी घर से लाई
खाद्य-सामग्री बच्चों में बाँट देते तथा छीना-झपटी नहीं होने देते। पुरी तलवँडी में
श्री गुरू नानक देव जी की प्रसिद्धि होने लगी कि इतनी कम उम्र में यह अपनी उम्र के
सारे बच्चों को किस प्रकार का पाठ पढ़ाते हैं और परमात्मा का नाम जपवाते हैं। सारे
लोग नानक जी के साथ स्नेह रखने लगे और उनका आदर और सत्कार करने लगे। नानक जी बच्चों
की मण्डली के मुखी बन गए थे और उनकी उम्र के सभी बच्चे हमेशा उनके साथ ही रहना
पसन्द करते थे। कोई भी खेल मानो नानक जी के बिना अधूरा ही रहता था। घर में भी माता
तृप्ता जी भी इस अनौखे बालक को पाकर खुश थीं। लेकिन इस बात का ज्ञान कि नानक जी
परमात्मा द्वारा किसी विशेष कार्य को करने के लिए आए हैं, केवल और केवल नानकी जी जो
कि श्री गुरू नानक देव जी की बहिन थीं, वह जान गईं थीं। नानक अन्य बालकों से
असाधारण थे और उनके इस प्रकार से परमात्मा का नाम जपना और अन्य बालकों से भी जपवाना
अपने आप में ही अदभुत प्रतीत होता है। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता था नानक जी के
अन्दर कई दिव्य शक्तियों का वास हो। जब वह किसी ब्राहम्ण आदि को पाखण्ड करते हुए
देखते तो मुस्कुराते भी थे, किन्तु कोई भी यह बात जान नहीं पाता था कि उनके मन में
क्या है और वह क्यों मुस्कुराते हैं। लेकिन नानक जी के मन में तो पूरे सँसार के लोगों
को उस पूर्ण परमात्मा का ज्ञान देने की बात थी। समय इसी प्रकार से व्यतीत होने लगा।