18. गुरू जी की सच खण्ड यात्रा
श्री गुरू नानक देव जी हर रोज सुबह अमृत वेले बेईं नदी में स्नान करके ध्यान में
मग्न होते थे। जब आप स्नान करने जाते तो आपके साथ एक सेवक होता था। एक दिन आपने कपड़े
उतारकर दास के पास रखकर नदी में गहरे प्रवाह में छलाँग लगा दी। यहाँ पर पानी बहुत
गहरा था। बस उसी गहरे पानी में आलोप हो गये। दास ने कुछ देर इन्तजार किया। जब आप
बाहर नहीं निकले तो दास ने जैराम को खबर दी की गुरू जी डूब गये हैं। फिर क्या था
सारा शहर वहाँ पहुँच गया और बड़े टोभूओं द्वारा तलाश होने लगी। आखिरकार निराश होकर
सब लोग वापिस आ गये। जैराम जोर–जोर से रोने लगा और दूती लोग कई प्रकार की बातें
बनाने लगे, कि भई यह तो मोदीखाने में घाटा पड़ गया था जिससे शर्म के मारे आत्महत्या
कर ली है। परन्तु बेबे नानकी का दिल अडोल रहा। वो अपने पति जैराम से बोली कि स्वामी
चिन्ता न करो। मेरा भाई कभी डूब नहीं सकता वह तो सँसार सागर में करोड़ों जीवों को
तारने वाले हैं, वह आप कहाँ डूब सकते हैं। परन्तु जैराम को धैर्य न आया। आखिर बेबे
नानकी ने कहा कि हे पतिदेव ! आप तीन दिन तक मेरे भाई का इन्तजार करो, जो तीसरे दिन
सुबह न आये तो समझना मेरा भाई डूब गया है। बेबे नानकी के कहने पर विश्वास करके सब
लोग तीन दिन तक चुप रहे। तीसरे दिन सुबह अमृत समय सब नगर के लोग बेईं नदी की तरफ चल
पड़े जहाँ पर कि गुरू जी आलोप हुए थे। अभी थोड़ी दूर ही गये थे कि गुरू नानक जी
स्वर्ण वस्त्र पहने हुए नगर की तरफ चले आ रहे हैं। बस फिर क्या था चारों तरफ जय–जय
कार होने लगी और नगर में खुशी के बाजे बजने लगे। जैराम ने गरीबों को खुले दिल से
दान पुन्न किया।