15. गौना
कुछ दिनों बाद ही तलवण्डी से मेहता कालू जी सभी सगे सम्बंधियों को लेकर सुलतानपुर
पहुँच गये तथा लगे नानक जी को सीख देने कि अब तेरी दुल्हन आ जाएगी तो तुझे
घर-गृहस्थी चलाने के लिए धन की आवश्यकता रहेगी परन्तु एक तुम हो कि अभी भी नहीं
सुधरे। पहले की भाँति भिखारिओं पर धन लुटा देते हो। कुछ सँजोकर भी रखा है कि नहीं ?
जो कि आड़े समय मे काम आ सके। नानक जीः पिता जी ! क्या करूँ धन तो बहुत प्राप्त होता
है मगर मेरे पास टिकता नहीं। मेहता कालू जी ने बेटी नानकी को सम्बोधन करते हुए कहाः
बिटिया ! अगर तुम थोड़ा सा ध्यान नानक की ओर अधिक दे दो तो यह धन सँचित कर सकता है।
बस तुम इस से आय-व्यय का हिसाब लिया करो। एक मात्र तुम्हारा अँकुश ही इसे सुधार सकता
है। नानकी जीः पिता जी ! आप इस बात से सन्तुष्ट क्यों नहीं होते कि भइया काम में लगे
हैं तथा अब कमाने भी लगे हैं। धीरे-धीरे वह अपनी घर गृहस्थी भी स्वयँ सम्भाल लेंगे।
आप निश्चिन्त रहें, भगवान सब ठीक करेगा। पूरी बारात बटाला नगर के लिए रवाना हो गई
और शीघ्र ही दुल्हन को, गौने की परम्परा और विधि अनुसार पूर्ण करके, विदा करवाकर
तलवण्डी लौट आए। कुछ दिन अपने माता-पिता के पास ठहरकर तथा राय बुलार जी से मिलते
हुए नानक जी वापिस सुलतानपुर लौटने लगे, तब पत्नी सुलक्खणी ने विनम्रता पूर्ण विनती
की कि उसे भी साथ ले चलें। नानक जी ने उन्हें धीरज बन्धाते हुए कहा, बात यह है कि
मैं अभी तक बहन के यहाँ ही ठहरा हुआ हूँ। मैं जब तक अलग से तेरे रहने के लिए मकान
आदि का प्रबन्ध नहीं कर लेता तब तक तुम्हें यहीं रहना होगा, क्योंकि मैं बहन जी के
ऊपर कोई बोझ नहीं डालना चाहता। यह सुन कर सुलक्खणी, जल्दी पास बुलाने का वायदा लेकर,
शान्त चित हो गईं।