13. कीर्तन के प्रति वेदना, विरह
समय व्यतीत होने लगा। अब नानक जी की मित्रता एक मिरासी युवक भाई मरदाना से हुई जो
कि उनके विवाह में संगीत का प्रदर्शन कर रहा था यह युवक नानक जी से लगभग 9 वर्ष बड़ा
था। मरदाना एक तन्त्रिवाद्य रबाब को बजाने तथा शास्त्रीय संगीत में प्रवीण था। वह
प्रतिदिन प्रातःकाल नानक जी के पास उपस्थित हो जाता। नानक जी कीर्तन करते, भाई
मरदाना संगीत की बन्दिश में उसे अलाप करता। कीर्तन की मधुरता सबको मन्त्र मुग्ध कर
देती तथा सभी हरि-यश का आनंद लेते। जिससे सभी लोग मन की एकाग्रता का अनुभव करते। यह
अनुभूति बनाये रखने के लिए सभी लालायित रहते तथा चाहते कि यह भोर का समय कभी समाप्त
ही न हो। अतः दूसरी प्रातःकाल की प्रतीक्षा मे उठ जाते। धीरे-धीरे नानक जी की
कीर्तन मण्डली की सदस्य सँख्या बढ़ने लगी। कीर्तन मण्डली का विस्तार होने से नानक जी
अपने व्यापार में ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहे थे। सभी सन्तुष्ट थे परन्तु पिता कालू
जी यह देखकर मन ही मन निराश होते। इन बातों को लेकर पिता-पुत्र में अक्सर तनाव बना
रहता। अधिक रोक-टोक से अब नानक जी का मन अपने व्यापार से उचाट होने लगा। वह अपना
अधिक समय भजन की ओर लगाते। धीरे-धीरे नानक जी की दुकान बन्द सी होकर रह गयी। अब
नानक जी की आयु लगभग 20 वर्ष थी। युवा पुत्र को कुछ कहते न बनता। अतः पिता जी
क्षुब्ध रहने लगे कि मेरा इकलौता बेटा किसी काम में रुचि नहीं लेता, बस वैरागी सा
बना रहता है। यह सब देख माता-त्रिपता जी भी नानक को दुनियादारी की बातें समझाने
बुझाने में लगी रहती। पिता कालू जी भी चिंतित व अशाँत रहते। वह सोचते कि अगर नानक
को साधु सन्तों तथा इन कीर्तन मण्डलियों से हटा लिया जाए तो नानक फिर से अपने
व्यापार में ध्यान देगा, जिससे फिर दुकानदारी चल निकलेगी। इसलिए उन्होंने नानक जी
पर कड़े प्रतिबन्ध लगा दिये कि वह वनों में नहीं जाएगा तथा गाने वाले मिरासियों से
कोई नाता नहीं रखेगा। प्रतिबन्ध के कारण नानक जी की दिनचर्या समाप्त सी हो गई। उनके
इस एकान्त वास अवस्था की पूरी तलवण्डी में चर्चा होने लगी? ?नानक जी न कुछ खाते हैं
न किसी से बात करते हैं? ?बस बिस्तर पकड़े हुए हैं।? जैसे-जैसे यह समाचार आस-पड़ौस
में फैलने लगा। लोग नानक जी को देखने के लिए आने लगे, परन्तु नानक जी किसी से भी
बात न करते, केवल शांत अडोल अवस्था में पड़े रहते। वैध को बुलवाया गया, परन्तु उसने
कहा यह बिल्कुल स्वस्थ है। परन्तु तुमने शरीर की यह क्या दशा बना रखी है ? वास्तव
में बात क्या है ? तब नानक जी ने निम्नलिखित पद्य उच्चारण करते हुए अपने दिल की बात
कह दीः
वैदु बुलाइआ वैदगी पकड़ि ढंढोले बांहि ।।
भोला वैदु न जानई करक कलेजे माहि ।।
वैदा वैद सुवैद तूं पहिला रोगु पछान ।।
ऐसा दारू लोड़ि लेहु जितु वंञै रोगा घाणि ।। रागु मल्हार, पृष्ठ 1279
अर्थः वैद्य ने मेरा बाजू पकड़कर नाड़ी परीक्षण किया है परन्तु वह
भोला वैद्य नहीं जानता कि व्याधि कहाँ है ? मुझे कोई शारीरिक दुख नहीं, मुझे तो
हृदय की पीड़ा सता रही है, क्योंकि मुझे हरि कीर्तन से तोड़ दिया गया है। मुझे हरि यश
की प्यास है जो तृप्त नहीं होती। अतः मैं तो तुझे सुयोग्य वैद्य तब मानूंगा जब तुम
पहले वास्तविक व्याधि को पहचानकर कोई ऐसी औषधि खोजो जिससे मेरे शरीरिक तथा मानसिक
सभी प्रकार के रोग समाप्त हो जाएँ। तब वैद्य ने पिता कालू जी को सम्बोधन होकर कहाः
तुम्हारे लड़के को शारीरिक रोग तो कोई है ही नहीं। अतः मैं इसका क्या उपचार करूँ ?
इसको तो मानसिक रोग है। जिसका एक मात्र उपचार यह है कि इन को खुश रखो। जैसा चाहता
है वैसा करने दो, नहीं तो लड़का खो बैठोगे। तब पिता जी गम्भीरता से सोचने लगे। उधर
नानक जी की बीमारी की सूचना राय साहब को मिल गई। वह स्वयँ नानक जी को देखने के लिए
आये। जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि वैद्य ने केवल प्रसन्नचित रखने का ही सुझाव दिया है
क्योंकि उन्हें कोई शारीरिक रोग दिखाई नहीं दिया। तब वह कालू जी पर बहुत नाराज हुएः
कि तुम स्वयँ ही इन परिस्थितियों के लिए उत्तरदायी हो। तुम्हें तो धन चाहिये। लड़के
की खुशी नहीं। मैंने पहले भी तुझे कई बार कहा है कि तुझे जितना धन चाहिये मुझ से ले
लो। किन्तु नानक जी के किसी भी कार्य में बाधा न डालो, परन्तु तुम मेरी सुनते ही कब
हो।